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बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर ईशनिंदा के झूठे आरोपों से बढ़ी हिंसा, मानवाधिकार रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासा

ढाका।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ ईशनिंदा के झूठे आरोप लगाकर हमले, हत्याएं और संपत्ति हड़पने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह गंभीर खुलासा बांग्लादेश के मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज (HRCBM) की ताजा रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ईशनिंदा के निराधार आरोप अब अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने और हिंसा का शिकार बनाने का एक हथियार बन चुके हैं।

हाल ही में मयमनसिंह जिले के भालुका उपजिला में 27 वर्षीय हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की बर्बर हत्या ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। 18 दिसंबर को गारमेंट फैक्ट्री में काम करने वाले दीपू पर सहकर्मियों ने ईशनिंदा का आरोप लगाया और उन्हें फैक्ट्री से बाहर खींच लिया। इसके बाद उग्र भीड़ ने उनकी बेरहमी से पिटाई कर हत्या कर दी। जांच में ईशनिंदा का कोई ठोस सबूत नहीं मिला। अंतरिम सरकार ने मामले में 12 लोगों को गिरफ्तार कर फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई का ऐलान किया है।

HRCBM की रिपोर्ट के अनुसार, जून से दिसंबर 2025 के बीच बांग्लादेश के 32 जिलों में ईशनिंदा से जुड़े 73 झूठे मामले सामने आए, जिनमें अधिकांश पीड़ित हिंदू अल्पसंख्यक थे। इन मामलों में पिटाई, लिंचिंग, जबरन कब्जा और सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाएं शामिल हैं। संगठन का कहना है कि कई बार व्यक्तिगत दुश्मनी, जमीन विवाद या अन्य निजी कारणों को छिपाने के लिए ईशनिंदा का आरोप लगाया जाता है।

मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से कट्टरपंथी ताकतें अधिक सक्रिय हो गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2025 की पहली छमाही में ही 258 सांप्रदायिक हमले दर्ज किए गए, जिनमें 27 हत्याएं और कई मंदिरों पर हमले शामिल हैं। इससे अल्पसंख्यक समुदाय में भय का माहौल गहराता जा रहा है।

इन घटनाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता जताई गई है। भारत ने इसे गंभीर मानवाधिकार मुद्दा बताया है, जबकि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने निष्पक्ष जांच और दोषियों को सख्त सजा देने की मांग की है। हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हिंसा की निंदा की है, लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि उठाए गए कदम नाकाफी हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि ईशनिंदा के झूठे आरोपों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त कानून, त्वरित न्याय और सामाजिक जागरूकता बेहद जरूरी है, ताकि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और भय के माहौल को खत्म किया जा सके।