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पीढ़ियों के कमजोर होते रिश्ते समाज के लिए गंभीर खतरा: जस्टिस सूर्यकांत

नई दिल्ली, सोमवार — सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने चेतावनी दी है कि देश में बुजुर्गों की देखभाल में कमी और पीढ़ियों के बीच कमजोर होते संबंध समाज के ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ती समृद्धि ने रिश्तों की गरमाहट को कम कर दिया है और भारत उस “पुरानी दुनिया” को खोने की कगार पर है जिसने समाज को मानवीय बनाए रखा था।

जस्टिस सूर्यकांत ‘मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट’ पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, “समृद्धि ने चुपचाप नज़दीकियों की जगह ले ली है। युवा नई दुनिया में काम की तलाश में आगे बढ़ रहे हैं, मगर इस प्रक्रिया में पीढ़ियों के बीच का दरवाजा बंद होता जा रहा है।”

उन्होंने कहा कि भारत में वृद्धावस्था को कभी पतन नहीं माना जाता था। बुजुर्ग परिवार की संस्कृति और मूल्य प्रणाली के ‘कथानक की आत्मा’ हुआ करते थे, लेकिन आधुनिकता और बदलती जीवन शैली ने इन संरचनाओं को कमजोर कर दिया है।
“हमने नई दुनिया हासिल कर ली है, मगर वह पुरानी दुनिया खो रही है जो हमें इंसान बनाए रखती थी,” उन्होंने कहा।

अपने संबोधन में जस्टिस सूर्यकांत ने एक हालिया मामले का जिक्र किया, जिसमें एक विधवा लगभग 50 वर्षों तक गुजारा-भत्ता के लिए कोर्ट के चक्कर काटती रही। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए उसकी संपत्ति वापस दिलाई।

उन्होंने कहा, “न्याय केवल तकनीकी रूप से सही होने से पूरा नहीं होता। गरिमा का अधिकार उम्र के साथ समाप्त नहीं होता। युवाओं को पुराने और नए के बीच पुल बनना होगा — चाहे डिजिटल लेन-देन में मदद करना हो, साथ बैठकर बातचीत करना हो या कतार में अकेला न छोड़ना हो। यही छोटी-छोटी बातें बुजुर्गों को जीने की वजह देती हैं।”

कार्यक्रम में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि भारत की संस्कृति की जड़ें बुजुर्गों के सम्मान में हैं।
“ओल्ड-एज होम हमारी संस्कृति में कभी नहीं था। लेकिन शहरीकरण और बदली जीवन शैली ने परिवारों के ढांचे को बदल दिया है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने माउंट आबू स्थित ब्रह्माकुमारी ओल्ड-एज होम के अपने दौरे का जिक्र करते हुए बताया कि वहां डॉक्टर, वकील, इंजीनियर जैसे पढ़े-लिखे बुजुर्ग रह रहे हैं क्योंकि उनके बच्चे विदेश में हैं।
“पैसा जरूरी है, मगर सबकुछ नहीं,” मंत्री ने कहा।

मंत्री ने यह भी बताया कि कई बुजुर्ग अपने बच्चों को संपत्ति लिख देते हैं और बाद में बच्चे उन्हें अकेला छोड़ देते हैं।
उन्होंने कहा, “सरकार उनकी संपत्ति वापस दिलाने को तैयार है, लेकिन ज़्यादातर मांएं कहती हैं—‘मेरे बेटे के खिलाफ मामला मत करो।’ दुख सहने के बाद भी मां का प्यार कम नहीं होता।”

सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव अमित यादव ने बताया कि वर्तमान में भारत में 10.38 करोड़ बुजुर्ग हैं और 2050 तक यह संख्या बढ़कर 34 करोड़ होने का अनुमान है।
उन्होंने कहा, “बुढ़ापा कमजोरी नहीं होना चाहिए; यह सम्मान, सुरक्षा और गरिमा के साथ आना चाहिए।”

जस्टिस सूर्यकांत और अन्य वक्ताओं के विचार स्पष्ट करते हैं कि तेजी से बदलती जीवनशैली, शहरीकरण और पारिवारिक ढांचे की टूटन ने बुजुर्गों के प्रति समाज की जिम्मेदारी को चुनौती दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पीढ़ियों के बीच संवाद और सहानुभूति की पुलिया नहीं बनाई गईं, तो यह सामाजिक ढांचे में गहरी दरारें पैदा कर सकता है।