इस्लामाबाद, 10 नवम्बर:
पाकिस्तान की राजनीति और शासन व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आने की संभावना जताई जा रही है। देश की संसद के ऊपरी सदन सीनेट में शनिवार को 27वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया है, जिसके जरिए सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर को असीमित शक्तियां देने का प्रस्ताव रखा गया है।
इस संशोधन का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 243 में बदलाव करना है। संशोधन के पारित होने के बाद जनरल मुनीर सेना के तीनों अंगों की एकीकृत कमान के प्रमुख बन जाएंगे और देश के दूसरे सबसे ताकतवर व्यक्ति, यहां तक कि राष्ट्रपति के समकक्ष, माने जाएंगे।
संविधान संशोधन को लेकर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी गठबंधन “तहरीक-ए-तहाफुज-ए-आईन-ए-पाकिस्तान (TTAP)” ने देशभर में विरोध-प्रदर्शन आयोजित किए हैं। इस गठबंधन में मजलिस वहदत-ए-मुस्लीमीन (MWM), पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI), पख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी (PKMAP), बलूचिस्तान नेशनल पार्टी (BNP-M) और सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल (SIC) शामिल हैं।
एमडब्ल्यूएम प्रमुख अल्लामा रजा नासिर अब्बास ने कहा, “यह संशोधन पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करेगा। देश को इस कदम के खिलाफ एकजुट होना होगा।”
वहीं पीकेएमएपी के नेता महमूद खान अचाकजई ने कहा कि सरकार “संविधान की नींव हिला रही है” और विपक्ष के पास अब “जनआंदोलन” के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
संशोधन का असर केवल सैन्य संरचना तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रस्ताव के तहत अनुच्छेद 175 में बदलाव किया जा रहा है, जिससे सुप्रीम कोर्ट की जगह एक नया संस्थान — फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट (FCC) — स्थापित किया जाएगा।
कई संविधान विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस कदम से पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक भूमिका कमजोर हो जाएगी।
एक वरिष्ठ वकील ने डॉन को बताया कि, “इस संशोधन के बाद सुप्रीम कोर्ट एक ‘सुप्रीम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट’ में बदल जाएगा, जिसके अधिकार बहुत सीमित रह जाएंगे।”
पूर्व अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल तारिक महमूद खोखर ने कहा कि संशोधन से “कार्यपालिका को न्यायपालिका पर नियंत्रण” मिल जाएगा, जिससे हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और तबादले में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका सीमित हो जाएगी।
संशोधित प्रावधानों के अनुसार, एफसीसी (Federal Constitutional Court) का मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से ऊपर दर्जा रखेगा। उसका कार्यकाल अधिक लंबा होगा और सेवानिवृत्ति की आयु 68 वर्ष तय की जाएगी, जबकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की रिटायरमेंट उम्र अभी 65 वर्ष है।
विपक्ष और विशेषज्ञों का मानना है कि यह संशोधन पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था और संवैधानिक संतुलन के लिए खतरा साबित हो सकता है। वहीं, सरकार के समर्थक इसे “संस्थागत दक्षता और न्यायिक सुधार” की दिशा में कदम बता रहे हैं।
अगर यह संशोधन पारित हो जाता है, तो पाकिस्तान के इतिहास में यह वह पहली बार होगा जब सेना प्रमुख को संवैधानिक रूप से कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों पर प्रभाव डालने वाली स्थिति प्राप्त होगी।







