नई दिल्ली, 12 नवंबर: बढ़ते वायु प्रदूषण और सांस से जुड़े रोगों के खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार ने सभी प्रदूषित क्षेत्रों में स्वास्थ्य तंत्र को सतर्क करने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उत्तर भारत के सभी राज्यों को 33 पन्नों का विस्तृत गाइडलाइन भेजा है, जिसमें बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बुजुर्ग उच्च जोखिम वाली श्रेणी में रखे गए हैं।
केंद्र सरकार ने निर्देश दिया है कि प्रत्येक सरकारी अस्पताल में चेस्ट क्लिनिक खोले जाएं, जहां प्रदूषण से प्रभावित रोगियों का प्रबंधन किया जा सके। दिशानिर्देश में यह भी बताया गया है कि रोगियों की रिपोर्टिंग और उनके स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए एक निर्धारित फॉर्मेट का प्रयोग किया जाए, जिसे प्रतिदिन जिला स्तर और फिर दिल्ली तक भेजना अनिवार्य है।
केंद्रीय सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने मुख्य सचिवों को लिखे पत्र में कहा कि वायु गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है, जो जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है। उन्होंने सभी राज्यों से आग्रह किया है कि वे मिलकर स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनाने की दिशा में काम करें।
केंद्र ने निर्देश दिए हैं कि पांचवीं कक्षा तक के बच्चे प्रदूषित क्षेत्रों में ऑनलाइन पढ़ाई करें। साथ ही निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए पानी का छिड़काव, सामग्री को ढक कर रखना और श्रमिकों को किट व मास्क उपलब्ध कराना अनिवार्य किया गया है। निर्माण श्रमिकों की नियमित स्वास्थ्य जांच और प्रशिक्षण भी आवश्यक होगा।
केंद्रीय सचिव ने सभी राज्यों से कहा है कि वे राज्य और जिला टास्क फोर्स को सक्रिय करें और पर्यावरण, परिवहन, नगर विकास, महिला एवं बाल विकास और श्रम विभागों के साथ समन्वय बढ़ाएं। साथ ही दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) का सख्ती से पालन कराएं।
मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण केवल सांस की बीमारी नहीं है, बल्कि यह दिल, दिमाग और तंत्रिका तंत्र पर भी असर डालता है। नागरिकों को सलाह दी गई है कि सुबह और देर शाम बाहर घूमने, दौड़ने या व्यायाम से बचें और इन समयों पर बाहर के दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें।











