पटना, 20 नवंबर 2025:
बिहार की राजनीति एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़ी है जहाँ उसके सबसे अनुभवी खिलाड़ी—नीतीश कुमार—ने एक और वापसी दर्ज कर ली है। एनडीए की ऐतिहासिक जीत के बाद गठबंधन ने औपचारिक रूप से नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुन लिया है। इसी के साथ वह 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं।
शपथ ग्रहण का मंच वही पुराना, परिचित और ऐतिहासिक—पटना का गांधी मैदान, जहाँ नीतीश पहले भी तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। आज यह मैदान फिर गवाह बनेगा एक ऐसे नेता की राजनीतिक स्थिरता का, जिसे बिहार ने दो दशकों से अधिक समय तक लगातार सत्ता का केंद्र बनाए रखा है।
पटना आज सुबह से ही राजनीतिक हलचल से भरा हुआ है। शहर के होर्डिंग्स पर नीतीश की मुस्कान, सड़कों पर एनडीए समर्थकों की भीड़ और गांधी मैदान में सुरक्षा का अभूतपूर्व इंतज़ाम—स्पष्ट कर रहा है कि यह सिर्फ एक शपथ ग्रहण नहीं, बल्कि ‘अनुभव की जीत’ का उत्सव है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह सहित कई केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय नेता कार्यक्रम में शामिल होंगे। आयोजन को भव्य और ऐतिहासिक बनाने के लिए राज्य सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है।
नालंदा के हरनौत के कल्याण बिगहा गांव से निकलकर बिहार राज्य बिजली बोर्ड तक पहुँचना और फिर वहां से पटना की सत्ता के गलियारों पर कब्ज़ा करना—नीतीश कुमार का सफर हमेशा अनोखा रहा है।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर नौकरी शुरू करने वाले नीतीश पर राजनीति की चिंगारी जेपी आंदोलन ने जलाई और यहीं से बनी उनकी वह राह, जिसने उन्हें बिहार की राजनीति का सबसे टिकाऊ चेहरा बना दिया।
राजनीति में कदम रखने के शुरुआती दोनों चुनाव—1977 और 1980—नीतीश हार गए। लेकिन यह हार उनके लिए ठहराव नहीं, तैयारी बनकर सामने आई। 1985 में पहली जीत, फिर मंत्री पद, और अंततः मुख्यमंत्री पद तक पहुंचना—यह सफर आसान नहीं था, पर दृढ़ था।
आज जब वे 10वीं बार शपथ लेंगे, तब यह भी साफ दिखेगा कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार जितने उतार-चढ़ाव किसी और नेता ने नहीं देखे।
फिर भी कुर्सी वही रही—और कुर्सी पर बैठा व्यक्ति भी वही रहा।
अगर नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन को एक कैलेंडर से जोड़ना हो, तो उसमें नवंबर सबसे चमकदार दिखेगा।
- 24 नवंबर 2005 – दूसरी बार मुख्यमंत्री
- 26 नवंबर 2010 – तीसरी बार
- 20 नवंबर 2015 – महागठबंधन के साथ सत्ता
- 16 नवंबर 2020 – सातवीं बार शपथ
- 20 नवंबर 2025 – 10वीं बार मुख्यमंत्री
ऐसा शायद ही किसी नेता के जीवन में होता है कि एक ही महीने ने बार–बार उसके राजनीतिक भाग्य को नयी उड़ान दी हो।
कुछ महीने पहले तक राजनीतिक हलकों में चर्चाएँ थीं—नीतीश कुमार अब अपनी आखिरी पारी खेल रहे हैं, उनका प्रभाव कम हो रहा है।
लेकिन चुनाव परिणामों ने ये तमाम चर्चाएँ पलट दीं।
जदयू और एनडीए के प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि भले राजनीति का मौसम बदलता रहे, पर अनुभव और रणनीति का मूल्य कभी खत्म नहीं होता।
आज जब वह 10वीं बार शपथ लेने जा रहे हैं, तब यह सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं—बल्कि यह संदेश है कि बिहार की राजनीति में अभी भी नीतीश फैक्टर जीवित है और असरदार है।













