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Dehradun: जौनसार-बावर में दशहरे पर होता है गागली युद्ध, वर्षों से चली आ रही पुतला दहन की जगह यह परंपरा; जानिए इतिहास

जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में दशहरे पर रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता। यहां पर गागली युद्ध होता है। पाइंते यानी दशहरा पर्व पर उत्पाल्टा व कुरौली गांव के लोग गागली यानी अरबी के डंठल से युद्ध करते हैं। यह ऐसा युद्ध है, जिसमें कोई हार-जीत नहीं होती, बल्कि ग्रामीण युद्ध कर पश्चाताप करते हैं। युद्ध के पीछे दो बहनों से जुड़ी कहानी प्रचलित है।

24 अक्टूबर को देशभर में दशहरा पर्व पर रावण के पुतले का दहन किया जाएगा, वहीं देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में पाइंता पर्व की धूम रहेगी। यहां रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, बल्कि कालसी ब्लाक के उत्पाल्टा व कुरौली गांवों के बीच गागली युद्ध होता है।

गागली युद्ध की तैयारियां पूरी

इस बार भी दोनों गांवों ने गागली युद्ध की तैयारियां पूरी कर ली हैं। युद्ध में दोनों गांवों के लोग एक स्थान पर एकत्र होकर अरबी के पत्ते व डंठलों से लड़ाई करते हैं। इसमें बुजुर्ग से लेकर युवा सभी लोग भाग लेते हैं। ग्रामीण गांव के सार्वजनिक स्थल पर एकत्र होकर ढोल-नगाड़ा व रणसिंघे की थाप पर हाथ में गागली के डंठल लिए युद्ध करते हैं।

खत के सदर स्याणा राजेंद्र राय का कहना है कि गागली युद्ध की परंपरा पीढ़ियों पुरानी है। युद्ध के बाद दोनों गांवों के लोग आपस में गले मिलते हैं। उसके बाद उत्पाल्टा गांव के पंचायती आंगन में ढोल-नगाड़ों की थाप पर सामूहिक रूप से तांदी, रासो व हारूल नृत्य की छठा बिखरती है।

दो बहनों से जुड़ी है युद्ध की कहानी

गागली युद्ध के पीछे दो बहनों की कहानी है। किवदंती है कि कालसी ब्लाक के उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी व मुन्नी गांव से कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं से पानी भरने गई थीं। रानी अचानक कुएं में गिर गई। मुन्नी ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की जानकारी दी, लेकिन स्वजन व ग्रामीणों ने मुन्नी पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगाया। इससे खिन्न होकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर जीवन समाप्त कर दिया। इससे स्वजन व ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ।

पाइंता पर्व से पहले की जाती है मुन्नी व रानी की मूर्तियों की पूजा

इसी घटना को याद कर पाइंता पर्व से दो दिन पहले मुन्नी व रानी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। पाइंता के दिन दो बहनों की मूर्तियां उसी कुएं में विसर्जित की जाती हैं। कलंक से बचने के लिए उत्पालटा व कुरौली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व पर गागली युद्ध के रूप में पश्चाताप करते हैं।

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