उत्तराखंड में जी-20 सम्मेलन के लिए पहुंच रहे विदेशी मेहमानों का खास धुन के साथ स्वागत किया जा रहा है। इस वजह से एक बार फिर यह गीत हर किसी की जुबां पर चढ़ने लगा है। बेडु पाको बारा मासा उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगीत है। मोहन उप्रेती और बृजमोहन शाह द्वारा संगीतबद्ध यह गीत दुनिया भर में उत्तराखंडियों द्वारा सुना जाता है। यह गीत स्व. बृजेन्द्र लाल शाह द्वारा लिखा गया था।
राग दुर्गा पर आधारित इस गीत को पहली बार वर्ष 1952 में राजकीय इंजर कॉलेज नैनीताल के मंच पर गाया गया। इसके बाद इसे दिल्ली में तीन मूर्ति भवन में एक अंतरराष्ट्रीय सभा के सम्मान में प्रदर्शित किया गया, जिससे इसे ज्यादा सुर्खियां मिली उस सभा में एचएमवी द्वारा बनाए गए इस गीत की रिकॉर्डिंग सभी मेहमानों को स्मारिका के रूप में भी दी गई थीं। यह भारत के पहले प्रधानमंत्री, जवाहर लाल नेहरू के पसंदीदा गीतों में से था।
प्रदेश में जी-20 के लिए पहुंच रहे विदेशी मेहमानों का स्वागत पारंपरिक तरीकों से किया जा रहा है। विदेशी मेहमान पारंपरिक खानों का स्वाद चखने के साथ ही पारंपरिक धुनों पर थिरक भी रहे हैं। इस खास धुन के साथ विदेशी मेहमानों का स्वागत किया जा रहा है, जिससे एक बार फिर ये गीत सबकी जुबां पर चढ़ने लगा है।
जी-20 सम्मेलन के लिए एक बार फिर देहरादून एयरपोर्ट पर विदेशी मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। रविवार को अलग-अलग फ्लाइटों से कुल 37 मेहमान जौलीग्रांट पहुंचे। कलाकारों ने उत्तराखंड के प्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगीत बेडु पाको बार मासा… की धुन पर सभी का स्वागत किया। इस दौरान सभी मेहमान भी कलाकारों के साथ खूब थिरके।