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नेपाल में जनरेशन-Z के उग्र विरोध प्रदर्शनों ने मचाया हाहाकार, पीएम ओली ने दिया इस्तीफा

नेपाल इन दिनों अपने इतिहास के सबसे बड़े जन आंदोलन से गुजर रहा है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले ने युवाओं के भीतर वर्षों से पल रहे असंतोष को भड़का दिया है। परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चौथी बार सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद इस्तीफा देना पड़ा।

पिछले एक सप्ताह से राजधानी काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में हिंसक प्रदर्शन जारी हैं। संसद भवन, सरकार का सचिवालय ‘सिंह दरबार’ और अन्य सरकारी संस्थानों पर प्रदर्शनकारियों ने हमला बोल दिया। कई इमारतों में आगजनी की घटनाएं सामने आई हैं। हालात इतने बिगड़ गए कि सरकार को सेना तैनात करनी पड़ी और कर्फ्यू लागू करना पड़ा।

सब कुछ तब शुरू हुआ जब ओली सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स (पूर्व में ट्विटर) समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार का कहना था कि ये प्लेटफॉर्म देश में “अराजकता और अफवाहों” को बढ़ावा दे रहे थे। लेकिन युवा वर्ग—विशेषकर Gen-Z—के लिए ये माध्यम केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति और राजनीतिक सक्रियता का मंच भी थे।

सरकार के इस कदम के बाद सड़कों पर उतरे हजारों युवा प्रदर्शनकारियों ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सत्ता के केंद्रीकरण के खिलाफ आवाज बुलंद की। विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण शुरू हुए थे, लेकिन सोमवार को हुई पुलिस की बर्बर कार्रवाई ने आग में घी का काम किया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 19 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें कई स्कूली छात्र भी शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ओली की लोकप्रियता पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिर रही थी। उन पर भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों का दुरुपयोग करने, प्रशासनिक संस्थाओं पर नियंत्रण करने और आलोचना को दबाने के आरोप लगते रहे हैं। खासकर, 2020 में प्रेम कुमार राय को भ्रष्टाचार निरोधक आयोग का प्रमुख बनाए जाने के बाद से युवा वर्ग का सरकार से मोहभंग तेज़ी से बढ़ा।

सोमवार रात एक आपातकालीन कैबिनेट बैठक के बाद, ओली ने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप दिया। हालाँकि, अब तक उनकी जगह कोई नया प्रधानमंत्री घोषित नहीं किया गया है और वे कार्यवाहक के रूप में पद पर बने हुए हैं।

राजधानी में बिगड़ते हालात को देखते हुए सरकार ने सेना को तैनात कर दिया है। काठमांडू में कई इलाकों में कर्फ्यू जारी है और सेना फ्लैग मार्च कर रही है। उधर, भारत सरकार ने नेपाल की यात्रा कर रहे अपने नागरिकों को सतर्क रहने की सलाह दी है और कुछ विमान सेवाओं को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है।

प्रदर्शनकारी केवल सोशल मीडिया बहाल करने की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे संविधान में बदलाव, प्रतिनिधि सभा भंग करने और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन की मांग कर रहे हैं। यह आंदोलन अब सिर्फ एक नीतिगत विरोध नहीं, बल्कि राजनीतिक परिवर्तन की पुकार बन चुका है। काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह समेत कुछ स्थानीय नेता इस आंदोलन को “राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त, जन-नेतृत्व वाला जनांदोलन” बता रहे हैं। नेपाल की राजनीति एक बार फिर अराजक मोड़ पर पहुंच गई है। देश को अब न केवल स्थायित्व की ज़रूरत है, बल्कि ऐसा नेतृत्व भी चाहिए जो युवाओं की आकांक्षाओं को समझे और लोकतंत्र को फिर से जनता के हाथों में लौटाए।