देहरादून। आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में घिरे कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के लिए आने वाले दिन काफी अहम होने वाले हैं। उन्हें आय से अधिक संपत्ति के मामले में घिर सकते हैं।
राज्य सरकार को 8 अक्टूबर तक मंत्री जोशी पर मुकदमे चलाने के बाबत फैसला लेना है। चूंकि, यह मामला विजिलेंस ने 8 जुलाई 2024 को मंत्री परिषद को भेजा था। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तय तीन महीने की अवधि के अंदर उत्तराखण्ड कैबिनेट को मुकदमा चलाने की स्वीकृति के बाबत अहम फैसला लेना है।
विजिलेंस कोर्ट ने यह भी कहा है कि मंत्री परिषद उत्तराखण्ड द्वारा लिये गये निर्णय से इस न्यायालय को अवगत करायें। विजिलेंस कोर्ट ने भ्र्ष्टाचार से जुड़े इस मामले की सुनवाई 19 अक्टूबर तय की है।
विशेष न्यायाधीश सतर्कता मनीष मिश्रा ने 2 सितम्बर को जारी आदेश में पुलिस अधीक्षक सतर्कता की आख्या का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय संविधान के अनुसार मंत्री परिषद, कार्य पालिका की निर्णय लेने के लिये सर्वोच्च संस्था है। ऐसे में यदि कोई मामला किसी लोक सेवक के सम्बन्ध में निर्णय हेतु कार्य पालिका की सर्वोच्च संस्था के समक्ष विचाराधीन हो, तो किसी न्यायालय को निर्धारित समयावधि से पूर्व कोई आदेश पारित करना न्यायासंगत नही होता है।
जज ने कहा कि यह सही है कि वर्तमान मामला धारा-17ए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अन्तर्गत विश्लेषित किया जाना है, परन्तु यदि अब धारा-17ए से पूर्व धारा-19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत माननीय सर्वोच्च न्यायालय के डा० सुब्रहामण्यम स्वामी बनाम डा० मनमोहन सिंह व अन्य, ए०आई० आर0,2012 सुप्रीम कोर्ट, पेज-1185 के निर्णय का परिशीलन किया जाये तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त निर्णय में किसी भी अभियोजन स्वीकृति के लिये तीन माह की समयावधि नियत की है।
ऐसे में इस न्यायालय के मत में मामला मंत्री परिषद को भेजे जाने का पत्र दिनॉकित 08.07.2024, जो पत्रावली पर कागज संख्या-8क/2 है, के आलोक में दिनाँक 08.07.2024 से तीन माह की समयावधि अर्थात दिनाँक 08.10.2024 तक इस मामले में मंत्री परिषद के निर्णय का इन्तजार किया जाना न्यायोचित है।
गौरतलब है कि अधिवक्ता व आरटीआई कार्यकर्ता विकेश नेगी ने बीते मार्च महीने में भाजपा सरकार में वन,उद्यान व सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी की आय से अधिक सम्पत्ति का खुलासा करते हुए मार्च महीने में विजिलेंस में शिकायत की थी।
इसके अलावा दून में सैन्यधाम निर्माण के घपले को लेकर भी विजिलेंस,प्रधानमंत्री कार्यालय व सीबीआई को शिकायत की थी।
बीते जुलाई महीने की 24/25 तारीख को दून जिला प्रशासन ने अधिवक्ता विकेश नेगी पर गुंडा एक्ट लगाकर छह महीने के लिए जिलाबदर कर दिया था। लेकिन कमिश्नर विनय शंकर पांडे ने जिलाबदर केआदेश को निरस्त कर दिया था।
देखें विशेष न्यायाधीश सतर्कता / प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश का आदेश-
न्यायालय विशेष न्यायाधीश सतर्कता / प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
देहरादून। फौजदारी प्रकीर्ण वाद संख्या-229/2024
विकेश सिंह नेगी- -बनाम- गणेश जोशी पत्रावली पेश हुयी। प्रार्थी मय विद्वान अधिवक्ता उपस्थित हैं। राज्य की ओर से विद्वान विशेष लोक अभियोजक (फौजदारी) उपस्थित हैं।
2.प्रार्थी के प्रार्थना पत्र कागज संख्या-3क के प्रस्तर संख्या-1 से यह दर्शित हो रहा है कि विपक्षी वर्तमान में उत्तराखण्ड शासन में मंत्री पद पर आसीन है और उनके विरुद्ध थानाध्यक्ष / पुलिस अधीक्षक सतर्कता अधिष्ठान, कारगी चौक, देहरादून
द्वारा सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही करने के लिये प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-156 (3) दण्ड प्रक्रिया संहिता इस आधार पर प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षी द्वारा आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित की गयी है।
इस सम्बन्ध में पुलिस अधीक्षक सतर्कता अधिष्ठान सेक्टर, देहरादून ने इस न्यायालय को अपनी आख्या
कागज संख्या-8क/1 के रुप में भेजी है, जिसमें दिनाँक 17.08.2024 को विशेष लोक अभियोजक (फौजदारी) द्वारा अपनी आख्या के साथ उत्तराखण्ड शासन के कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग-8 का पत्र संख्या-223313/PVD5/24/2024 देहरादून दिनाँक 08.07.2024 संलग्न है, जिसमें सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) उत्तराखण्ड शासन को इस मामले में शासनादेश दिनांकित 29.08.1977 के प्रस्तर संख्या-4(1) के आलोक में शिकायत को प्रशासकीय विभाग मंत्री परिषद विभाग के स्तर पर परीक्षण एवं यथोचित कार्यवाही हेतु प्रेषित किये जाने का निर्णय लिये जाने की सूचना अपर सचिव कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग-5 द्वारा दी गयी है। ऐसे में यह दर्शित हो रहा है कि प्रश्नगत मामला मंत्री परिषद को निर्णय हेतु भेजा चुका है।
भारतीय संविधान के अनुसार मंत्री परिषद, कार्य पालिका की निर्णय लेने के लिये सर्वोच्च संस्था है। ऐसे में यदि कोई मामला किसी लोक सेवक के सम्बन्ध में निर्णय हेतु कार्य पालिका की सर्वोच्च संस्था के समक्ष विचाराधीन हो, तो किसी न्यायालय को निर्धारित समयावधि से पूर्व कोई आदेश पारित करना न्यायासंगत नही होता है। यह सही है कि वर्तमान मामला धारा-17ए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अन्तर्गत विश्लेषित किया जाना है, परन्तु यदि अब धारा-17ए से पूर्व धारा-19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत माननीय सर्वोच्च न्यायालय के डा० सुब्रहामण्यम स्वामी बनाम डा० मनमोहन सिंह व अन्य, ए०आई० आर0,2012 सुप्रीम कोर्ट, पेज-1185 के निर्णय का परिशीलन किया जाये तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त निर्णय में किसी भी अभियोजन स्वीकृति के लिये तीन माह की समयावधि नियत की है।
ऐसे में इस न्यायालय के मत में मामला मंत्री परिषद को भेजे जाने का पत्र दिनॉकित 08.07.2024, जो पत्रावली पर कागज संख्या-8क/2 है, के आलोक में दिनाँक 08.07.2024 से तीन माह की समयावधि अर्थात दिनाँक 08.10.2024 तक इस मामले में मंत्री परिषद के निर्णय का इन्तजार किया जाना न्यायोचित है। तदानुसार यह न्यायालय इस पत्रावली में दिनाँक 08.10.2024 के बाद की तिथि लगाना न्यायोचित समझता है।
उपरोक्त विवेचना के साथ यह न्यायालय यह अवधारित करता है कि इस पत्रावली में दिनॉक 08.10.2024 के उपरान्त ही सुनवायी किया जाना न्यायसंगत है। मंत्री परिषद उत्तराखण्ड द्वारा दिये गये निर्णय के सम्बन्ध में यह न्यायालय सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) उत्तराखण्ड शासन से अनुरोध करता है कि वह मंत्री परिषद उत्तराखण्ड द्वारा लिये गये निर्णय से इस न्यायालय को अवगत करायें। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों तथा दिनाँक 08.10.2024 तक निर्णय लिये जाने के मंत्री परिषद के पास निहित विवेकाधिकार को देखते हुये इस पत्रावली में यह न्यायालय दिनॉक 19.10.2024 की तिथि नियत करता है।
इस आदेश की एक प्रति अनुपालनार्थ सचिव मंत्री परिषद (गोपन विभाग) उत्तराखण्ड शासन को प्रेषित की जाये। पत्रावली दिनॉक 19.10.2024 को पेश हो।
(मनीष मिश्रा)
विशेष न्यायाधीश सतर्कता / प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
देहरादून।