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‘नए बांग्लादेश’ का सपना अधूरा? संसद परिसर तक पहुंचे युवा प्रदर्शनकारी, जुलाई चार्टर पर बवाल

ढाका, 18 अक्टूबर 2025 | विशेष रिपोर्ट
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा लाया गया ‘जुलाई चार्टर’, जो देश में लोकतांत्रिक सुधारों का रोडमैप बताकर पेश किया गया था, अब खुद जनता के आक्रोश और विश्वास की कमी का शिकार होता नजर आ रहा है। शुक्रवार को संसद भवन के बाहर इकट्ठा हुए हजारों युवाओं ने चार्टर में अपनी मांगों की अनदेखी से नाराज़ होकर संसद परिसर में घुसकर जमकर विरोध प्रदर्शन किया।

हालांकि चार्टर पर पूर्व पीएम खालिदा जिया की बीएनपी और अन्य आठ सहयोगी दलों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं, लेकिन नवगठित राजनीतिक दल ‘नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी)’ और सैकड़ों युवा इसे “सत्ता की सौदेबाज़ी” मान रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि उनके संघर्ष, बलिदान और मुद्दों को चार्टर में जगह नहीं मिली। वे यह भी पूछ रहे हैं कि अगर “पुराना सिस्टम” लौट आया तो फिर उन्होंने **हसीना सरकार के खिलाफ विद्रोह क्यों किया था?”

जैसे-जैसे दिन चढ़ा, भीड़ गुस्से में बदल गई। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के गेट फांदकर अंदर घुसने की कोशिश की, नारेबाज़ी की, पोस्टर जलाए और “हसीना के उत्तराधिकारी नहीं चाहिए” जैसे नारे लगाए।

👉 पुलिस को स्थिति काबू में लाने के लिए आंसू गैस, लाठीचार्ज और तेज आवाज़ वाले ग्रेनेड का सहारा लेना पड़ा। कई प्रदर्शनकारियों को चोटें भी आईं।

अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस ने संसद के बाहर मौजूद भीड़ को संबोधित करते हुए कहा:

“जुलाई चार्टर पर हस्ताक्षर का मतलब है कि बांग्लादेश अब अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ रहा है। हम बर्बरता से निकलकर एक सभ्य राष्ट्र बन रहे हैं।”

लेकिन जमीनी हकीकत शायद इससे उलट है — क्योंकि जवाब में भीड़ चिल्लाई: “हमारी आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता!”

यूनुस सरकार ने फरवरी 2026 में आम चुनाव कराने का ऐलान किया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह चुनाव वास्तव में सभी पक्षों को साथ लेकर चल पाएगा?

🔹 हसीना की अवामी लीग, जो अभी भी निर्वासन में है, इस प्रक्रिया से बाहर है।
🔹 एनसीपी और जमात-ए-इस्लामी ने चार्टर पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
🔹 और जमीनी गुस्सा लगातार बढ़ रहा है।

जुलाई 2024 में देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना को सत्ता से हटाया गया।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, उस विद्रोह में 1,400 से अधिक लोग मारे गए।
अब हसीना भारत में निर्वासन में हैं और उन पर मानवता के खिलाफ अपराधों का मुकदमा चल रहा है।

अंतरिम सरकार भले ही चार्टर को लोकतंत्र की जीत बता रही हो, लेकिन युवा आंदोलनकारियों और विपक्षी दलों के विरोध ने यह साफ कर दिया है कि केवल दस्तावेज़ी सुधारों से बदलाव नहीं होगा।
बांग्लादेश का नागरिक समाज वास्तविक भागीदारी, जवाबदेही और न्याय चाहता है — सिर्फ वादे नहीं।