भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपनी पहली पूर्णतः स्वदेशी माइक्रोचिप ‘विक्रम 3201’ का सफल विकास किया है। इस उपलब्धि को देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा गेम-चेंजर माना जा रहा है।
यह चिप न केवल पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है, बल्कि इसमें कस्टम इंस्ट्रक्शन सेट आर्किटेक्चर भी शामिल है। ‘विक्रम 3201’ एक 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर है, जो एक समय में 32 बिट डाटा को प्रोसेस करने की क्षमता रखता है। इसे विशेष रूप से अंतरिक्ष, रक्षा, रॉकेट, और वायु यातायात नियंत्रण प्रणालियों में उपयोग के लिए तैयार किया गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह चिप -55 से 125 डिग्री सेल्सियस के कठोर तापमान में भी काम करने में सक्षम है। इसके साथ ही, इसमें अत्यधिक विश्वसनीय मानी जाने वाली एडीए प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के लिए उच्च स्तरीय समर्थन भी मौजूद है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सेमीकॉन इंडिया 2025’ सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर इस तकनीकी क्रांति की सराहना करते हुए कहा, “21वीं सदी की शक्ति अब एक छोटी सी चिप में सिमट गई है। तेल अगर काला सोना है, तो चिप डिजिटल हीरा है।” उन्होंने विश्वास जताया कि भारत निर्मित यह चिप आने वाले समय में वैश्विक तकनीक के परिदृश्य में बड़ा बदलाव लाएगी।
सेमीकंडक्टर निर्माण में अभी तक ताइवान, अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे देशों का वर्चस्व रहा है। ताइवान की एक प्रमुख कंपनी अकेले ही विश्व की 60% चिप्स बनाती है। लेकिन अब भारत भी इस प्रतिस्पर्धा में उतर चुका है।
सरकार की सेमीकंडक्टर नीति के अंतर्गत देश में इस समय 10 प्रमुख प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है, जिनमें कुल 1.6 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। इनमें से चार प्रोजेक्ट्स पर पायलट स्तर पर चिप निर्माण शुरू हो चुका है। उल्लेखनीय है कि दुनिया की लगभग 20% चिप डिजाइनिंग का कार्य पहले से ही भारत में होता है।
सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक उच्च-स्तरीय सीईओ गोलमेज बैठक में भी भाग लिया, जिसमें क्वालकॉम, इंटेल, एनवीडिया, मीडियाटेक और ब्रॉडकॉम जैसी अग्रणी सेमीकंडक्टर कंपनियों के शीर्ष अधिकारी उपस्थित रहे। इस बैठक में भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर विनिर्माण और नवाचार केंद्र बनाने की दिशा में रणनीतिक सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा हुई।
भारत की यह पहल देश को डिजिटल अर्थव्यवस्था में और अधिक मजबूती प्रदान करेगी, और साथ ही वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में उसकी भूमिका को और अधिक सशक्त बनाएगी।