नई दिल्ली।
क्रिकेट के मैदान पर जीत का जश्न अभी थमा भी नहीं था कि भारतीय टीम अगली जंग के लिए तैयार हो गई। वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज में 2-0 से धमाकेदार जीत दर्ज करने के सिर्फ 24 घंटे बाद ही टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया के लिए रवाना हो गई। थकावट, सफर और ब्रेक? फिलहाल भारतीय क्रिकेटरों की डिक्शनरी में इन शब्दों की कोई जगह नहीं।
नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उस वक्त अलग ही नज़ारा देखने को मिला जब एक-एक कर टीम इंडिया के सितारे नजर आए। फैंस की नजरें विराट कोहली की एक झलक पाने को बेताब थीं। आखिरकार, यह वही कोहली हैं जो मार्च 2025 के बाद पहली बार भारतीय जर्सी में मैदान में उतरने वाले हैं। उनकी वापसी को लेकर लोगों में गजब का उत्साह है।
टीम इंडिया का हाल ऐसा है जैसे किसी एक्सप्रेस ट्रेन को बिना ब्रेक के दौड़ाया जा रहा हो। एशिया कप में जीत, फिर टेस्ट सीरीज, और अब ऑस्ट्रेलिया का चुनौतीपूर्ण दौरा। खिलाड़ी एक टूर्नामेंट से निकलते नहीं कि दूसरा सामने खड़ा हो जाता है।
शुभमन गिल, जो इस समय तीनों फॉर्मेट में कप्तानी या उपकप्तानी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, शायद सबसे अधिक दबाव में हैं। लगातार खेल, कप्तानी और यात्राएं — सब एक साथ।
14 अक्टूबर को दिल्ली में टेस्ट सीरीज खत्म हुई, और अब 19 अक्टूबर को पर्थ में पहला ODI मुकाबला खेला जाएगा — यानी सिर्फ 5 दिनों का छोटा सा ब्रेक। ये भी कोई आराम है?
और बात यहीं खत्म नहीं होती। ऑस्ट्रेलिया सीरीज के बाद टीम को नवंबर में साउथ अफ्रीका के खिलाफ दो टेस्ट मैच खेलने हैं। क्रिकेटर हैं या मशीनें?
इस तेज़ शेड्यूल का असर साफ दिखने लगा है। चोटिल खिलाड़ी बढ़ रहे हैं, परफॉर्मेंस में उतार-चढ़ाव भी दिखता है। कोचिंग स्टाफ और BCCI पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या खिलाड़ियों के वर्कलोड को लेकर सही प्लानिंग की जा रही है?
नजर डालें टीम इंडिया के हाल के शेड्यूल पर:
- 28 सितंबर – एशिया कप फाइनल (दुबई)
- 2 अक्टूबर – वेस्टइंडीज के खिलाफ पहला टेस्ट (अहमदाबाद)
- 14 अक्टूबर – दूसरा टेस्ट खत्म (नई दिल्ली)
- 19 अक्टूबर – ऑस्ट्रेलिया में पहला ODI (पर्थ)
- 14 नवंबर – साउथ अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज (कोलकाता)
टीम इंडिया की जीतों का सिलसिला तो जारी है, लेकिन खिलाड़ियों की ऊर्जा और फिटनेस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। अगर ऐसे ही शेड्यूल चलता रहा, तो आने वाले महीनों में थकावट और चोट बड़ी चुनौती बन सकती है। वक्त आ गया है कि वर्कलोड मैनेजमेंट को सिर्फ शब्दों से नहीं, एक्शन से लागू किया जाए।