देहरादून। 16वें वित्त आयोग की टीम के उत्तराखंड राज्य भ्रमण के दौरान आज देहरादून में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष संगठन एवं प्रशासन सूर्यकान्त धस्माना के नेतृत्व मे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधिमंडल ने बैठक में प्रतिभाग करते हुए कांग्रेस पार्टी की ओर से सुझाव प्रस्तुत किये। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से 16वें वित्त आयोग की टीम को सौंपे सुझाव पत्र में प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष संगठन एवं प्रशासन सूर्यकान्त धस्माना ने उत्तराखंड राज्य को विषेश राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग करते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य का गठन राज्य की जनता के दशकों चले लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2000 में 9 नवंबर को अस्तित्व में आया। राज्य के गठन की मांग के पीछे सबसे अहम कारण दशकों तक इस सीमावर्ती छेत्र की विकास में उपेक्षा, जल जंगल जमीन से आच्छादित इस भू भाग का देश और दुनिया के लिए पर्यावरणीय योगदान, यहां की नदियों का भारत के बड़े भू भाग को जल उपलब्धता का योगदान, अंतराष्ट्रीय सीमाओं से लगे होने का देश की सुरक्षा में अहम योगदान होने के बावजूद जिस प्रकार से उत्तराखंड का विकास होना चाहिए था उसके ना होने से यहां पैदा हुई रोटी रोज़ी का संकट, पलायन, महिलाओं के कष्ट आदि समस्याओं के कारण राज्य निर्माण की मांग का आंदोलन हुआ जिसकी परणिति राज्य का गठन हुआ। कांग्रेस पार्टी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य निर्माण से लेकर अब तक 25 वर्षों का सफर तय कर चुका है। इन पच्चीस वर्षों में निश्चित रूप से हमारी योजना के आकार ने बहुत विस्तार किया। राज्य निर्माण के पहले वर्ष के बजट के आकार से आज राज्य का बजट चौबीस गुना लगभग 1 लाख 1 हजार 175 करोड़ बेशक हो गया, किन्तु इसके बावजूद अगर राज्य की उन समस्याओं की ओर थोड़ा पीछे मूड कर देखें तो कहीं ना कहीं यह टीस मन में उठती है कि राज्य के जिन मूल मुद्दों के लिए इस राज्य गठन के लिए संघर्ष हुआ था और अनेक बलिदान और कुर्बानियां हुईं थी, वे मुद्दे आज भी जस के तस हमारे सामने और अधिक विकराल रूप लिए खड़े हैं। राज्य में पलायन की गति इन पच्चीस वर्षों में कम होने की बजाय बढ़ गई और अनेक गांव Ghosht Village बन गए जहां आबादी ही नहीं रही। हमारे खेती योग्य कुल भू भाग का बड़ा हिस्सा बंजर हो गया। देश के बड़े हिस्से को पानी देने वाले उत्तराखंड के अनेक गांव आज भी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। प्रदेश की महिलाओं के सर से घास, पानी, लकड़ी का बोझ उतना कम नहीं हुआ जिसकी अपेक्षा थी। राज्य में सरकारी प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षा का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल यह है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के ग्रह जनपद में जिला अस्पताल में बस दुर्घटना के मरीजों का प्राथमिक उपचार लाइट व जनरेटर खराब होने के कारण टॉर्च जला कर करना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सक तो दूर की कौड़ी है एमबीबीएस डॉक्टर भी कम हैं। बहुत सारी परेशानियों से राज्य आज भी जूझ रहा है और इसके लिए राज्य को केंद्र की विशेष अनुकंपा व सहायता चाहिए। अनेक बार राज्य की विशेष भौगोलिक परिस्थितियां देश की सुरक्षा सामरिक दृष्टि से, पर्यावरणीय दृष्टि से व एशिया का सबसे बड़ा वाटर बैंक होने की वजह से उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्ज दिए जाने व राज्य को ग्रीन बोनस दिए जाने की मांग सभी राजनैतिक दल करते आए हैं। पिछले वित्त आयोग के समक्ष भी हमने यह मांग पुरजोर तरीके से रखी थी और 15वें वित्त आयोग ने उससे सहमति भी व्यक्त की थी, किंतु उत्तराखंड को अपेक्षा के अनुरूप सहायता नहीं मिली।
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने उत्तराखंड राज्य को विषेश राज्य का दर्जा बहाल करते हुए राज्य को आर्थिक पैकेज देने का अनुरोध किया की :-
1. विषेश भौगोलिक परिस्थिति:- उत्तराखंड राज्य के 10 जनपद पूर्णतः पर्वतीय हैं, देहरादून जनपद मैदानी व पर्वतीय क्षेत्र में विभाजित है तथा अन्य 2 जनपद मैदानी व तराई भावर क्षेत्र हैं। राज्य का 67 प्रतिशत भूभाग वन क्षेत्र है जिसमें 47 प्रतिशत वन व 20 प्रतिशत वन भूमि है। जिसके कारण वन अधिनियम 1980 के प्रावधानो के तहत गैर वन गतिविधियां प्रतिबन्धित हैं। राज्य में खेती योग्य भूमि केवल 33 प्रतिशत है, जिसका अधिकांश भाग असिंचित है। राज्य में नेशनल पार्क, नेशनल सेंचुरीज व आरक्षित वन क्षेत्र होने के कारण विकास की गतिविधियां बहुत सीमित हैं। अतः उत्तराखंड के विशेष भौगोलिक परिस् संगठन एवं प्रशासन थयों को देखते हुए इस पर्वतीय राज्य के लिए अलग लागत संवेदनशीलता गुणांक ( Cost disability factor) निर्धारित करना चाहिए। राज्य को अपनी पर्यावरणीय सेवाओं, देश के लिए जल-जंगल व जैव विविधता की रक्षा के बदले प्रतिपूर्ति के रूप में ग्रीन बोनस प्रदान किया जाय।
2. आपदा प्रबन्धनः- उत्तराखंड राज्य मध्य हिमालय का भूभाग है, जो हिमालयी श्रंखला के पहाड़ों मे सबसे नये पहाड़ हैं तथा अपने शैशव काल में हैं। इनकी बनावट अभी जारी है जिसके कारण इनमें हमेशा भूगर्भीय हलचलें भूकंप, भूस्खलन, बादल फटने की घटनायें, ग्लेशियर टूटने व नदियों का रूख परिवर्तन जारी रहता है। जिसके कारण राज्य को प्राकृतिक आपदाओं का सामना अक्सर करना पड़ता है। राज्य बनने से पूर्व 90 के दशक में 1991 का उत्तरकाशी-टिहरी भूकंप व 1999 का रूद्रप्रयाग-चमोली भूकंप तथा राज्य बनने के बाद 2010 व 2013 में आई भीषण आपदायें इसका जीता जागता उदाहरण हैं। हर वर्ष गर्मियों के मौसम में राज्य के पर्वतीय भू भाग में वनाग्नि के कारण भारी नुकसान राज्य की वन सम्पदा को होता है। उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जहां राज्य गठन के समय ही अलग से आपदा प्रबन्धन मंत्रालय का गठन किया गया था, किन्तु राज्य में आपदाओं से निपटने के लिए अब तक कोई प्रभावी तंत्र विकसित नहीं हुआ है, जिसके कारण प्राकृतिक व मानवीय आपदाओं से निपटने के लिए कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। अतः राज्य में दीर्घकालीन आपदा प्रबन्धन तैयारियों के लिए राज्य को विषेश पैकेज का प्रावधान किया जाना चाहिए।
3. क्षेत्रफल व जनसंख्या में असंतुलनः- जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि उत्तराखंड राज्य की विषेश भौगोलिक परिस्थितियों में पर्वतीय जनपदों में जिलों, तहसीलों, विकासखंडों व ग्राम पंचायतों का क्षेत्रफल अत्याधिक है, जबकि उसके अनुपात में जनसंख्या कम है। जिस कारण अवस्थापना विकास में मिलने वाली धनराशि क्षेत्रफल के हिसाब से बहुत कम मिलती है। अतः दुर्गमता, जनसंख्या घनत्व व सेवाओं की पहुंच व सीमावर्ती क्षेत्र के आधार पर आवंटन की पुर्नसंरचना की जाय।
4. सीमान्त क्षेत्रः- उत्तराखंड राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील पड़ोसी देश चीन, तिब्बत व नेपाल की सीमा से लगा हुआ है। अतः सीमावर्ती जनपदों में बुनियादी ढांचगत सुविधायें सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा व दूर संचार व डिजिटल कनेक्टिविटी हेतु विषेश अनुदान की व्यवस्था की जानी चाहिए।
5. स्थानीय निकायः- विषम भौगोलिक परिस्थितियां पर्वतीय जनपदों में ग्राम पंचायतें, जिला पंचायत, विकासखंड, नगर पालिका व नगर पंचायत क्षेत्र बडे होने व जनसंख्या घनत्व कम होने के कारण स्थानीय निकायों को निर्धारित जनसंख्या मानदंड में छूट दी जाय।
6. पलायनः- राज्य के पर्वतीय जनपदों से पलायन रोकने हेतु स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन, लाभकारी खेती के लिए प्रोत्साहन, पशुपालन व अन्य गतिविधियों हेतु विषेश पलायनरोधी विकास योजना लागू की जानी चाहिए।
7. महिला सशक्तीकरणः- उत्तराखंड राज्य महिला प्रधान प्रदेश है। राज्य के पर्वतीय अंचलों में गांव के अस्तित्व बचाने में महिलाओं का सबसे बडा योगदान है। घर, चूल्हा, पशु पालन, खेत, पानी, ईंधन यह सब महिलाओं पर ही निर्भर है। राज्य की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ करने तथा उनकी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए विशेष व्यवस्था करने की दीर्घकालीन नीति सरकारों को बनानी होगी। राज्य को इसके लिए विषेश आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए।
8. ऊर्जा क्षेत्र :- उत्तराखंड राज्य जल विद्युत परियोजनाओं, सौर ऊर्जा परियोजनाओं व पवन ऊर्जा परियोजनाओं का बड़ा स्रोत है। राज्यभर में नदी, नालों, गधेरों पर लघु पन बिजली योजनाओं, बंजर पड़ी भूमि पर सौर ऊर्जा प्लांटों की स्थापना व पवन ऊर्जा लघु परियोजनायें राज्य की आय का बड़ा स्रोत बन सकती हैं। इसके लिए राज्य को विषेश सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
9. तीर्थाटन व पर्यटनः- उत्तराखंड में चारधाम के अलावा अनेक तीर्थ स्थल, सिद्धपीठ विद्यमान हैं, जो देश और दुनियां के तीर्थ यात्रियों को आकर्षित करते हैं। हर वर्ष चारधाम यात्रा व हरिद्वार में होेने वाले अर्द्धकुंभ व महाकुंभ में राज्य को अत्यधिक धन व्यय करना पड़ता है। जबकि तीर्थाटन से राज्य को कोई विशेष आय नहीं होती है। प्रदेश के तीर्थाटन को अधिक आकर्षित, यात्रियों के लिए सुविधाजनक बनाने के लिए विषेश सहायता स्थायी रूप से दी जानी चाहिए।
पर्यटन की दृष्टि से उत्तराखंड राज्य पूरे देश और दुनियां के पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां की प्राकृतिक नैसर्गिक संन्दरता, पहाड़, नदियां, घाटियां, वन, नेशनल पार्क, नेशनल सेंचुरीज, वन्य जीव अभ्यारण्य अद्भुत हैं। प्रदेश में पर्यटन को रोजगार परक व लाभकारी बनाने तथा पर्यटकों के लिए ढांचागत सुविधाओं को विकसित करने के लिए केन्द्र द्वारा दीर्घकालीन विषेश सहायता का प्रावधान किया जाना चाहिए।
10. राजस्व घाटे की दीर्घकालिक भरपाईः- उत्तराखंड राज्य निर्माण के समय से ही राजस्व घाटे के संकट से जूझता रहा है। राजस्व घाटा प्रतिवर्ष बढता जा रहा है। अतः योजनागत व्यय को बाधा रहित बनाने हेतु विषेश राजस्व घाटा अनुदान अगले 10 वर्षों तक के लिए अनुमन्य किया जाय।
कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रदेश उपाध्यक्ष संगठन एवं प्रशासन सूर्यकान्त धस्माना ने किया l प्रदेश प्रवक्ता गिरिराज किशोर हिंदवान प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे।