नई दिल्ली। एलोपैथी दवाओं और टीकाकरण के खिलाफ पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि से कहा कि आखिर पतंजलि आयुर्वेद कैसे कह सकती है कि उसकी चीजें रसायन आधारित दवाओं से बेहतर है? ऐलोपैथी के खिलाफ विज्ञापनों पर पतंजलि आयुर्वेद पर सुप्रीम कोर्ट जमकर बरसा और पूछा कि आखिर कोर्ट के आदेश के बाद भी यह विज्ञापन लाने की हिम्मत कैसे हुई।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद पतंजलि आर्युवेद द्वारा विज्ञापन प्रकाशित करने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह खुद अखबार लेकर अदालत पहुंचे थे। इसके बाद अखबार का विज्ञापन दिखाते हुए उन्होंने पतंजलि आर्युवेद से कहा कि आखिर आपमें कोर्ट के आदेश के बाद भी यह विज्ञापन लाने का साहस और गट्स कैसे रहा. जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने पतंजलि आर्युवेद से स्पष्ट कहा कि आप कोर्ट को उकसा रहे हैं।
जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि, हम एक बहुत सख्त आदेश पारित करने जा रहे हैं। आप कैसे कह सकते हैं कि आप बीमारी को ठीक कर देंगे? हमारी चेतावनी के बावजूद आप कह रहे हैं कि हमारी चीजें रसायन आधारित दवाओं से बेहतर हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को भी इस पर एक्शन लेना चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के वकीलों से विज्ञापन देखने को कहा है।
इससे पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि से कहा था कि वह कोई भ्रामक विज्ञापन या गलत दावा न करे। कोर्ट ने पतंजलि को चेतावनी देते हुए कहा कि भारी जुर्माना लगाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि यह गलत दावा किया जाता है कि किसी विशेष बीमारी को ठीक किया जा सकता है तो पीठ प्रत्येक उत्पाद पर 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने पर भी विचार कर सकती है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों से निपटने के लिए एक प्रस्ताव देने को कहा था. बता दें कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
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