विधानसभा चुनाव को लेकर संगठन को सक्रिय करने के साथ नए लोगों को जिम्मेदारी देने में जुटी कांग्रेस की बैठकों व रैली में गुटबाजी के मामले अब भी नहीं थम रहे। चार दिन पहले स्वराज आश्रम में हंगामा हुआ। उससे पहले परिवर्तन यात्रा में नेताओं की राह बदल गई। चुनाव से छह माह पहले इस तरह की गुटबाजी को लेकर सबसे ज्यादा परेशान आम कार्यकर्ता हैं। क्योंकि, हर बार हंगामे की वजह बनने वाले लोगों की पहचान कार्यकर्ता की बजाय करीबी की ज्यादा है। बैठक में रणनीति पर फोकस करने और पदाधिकारियों की राय पर अमल करने की बजाय इन्हें हूटिंग और अपने खास नेता के समर्थन में जिंदाबाद कहना ज्यादा पसंद है।
सत्ता और भाजपा के मजबूत संगठन से लडऩा कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। साढ़े चार साल कांग्रेस विपक्ष के तौर पर भाजपा से लडऩे की बजाय अधिकांश अपनी गुटबाजी के बीच फंसी रही। जुलाई में केंद्रीय हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष बदलने के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिए। और हमेशा चेहरे की पैरवी करने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया। इस नई टीम में जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का संतुलन बनाने का पूरा प्रयास किया गया।