नई दिल्ली, 13 अक्टूबर:
गाज़ा पट्टी में जारी संघर्ष को समाप्त करने और क्षेत्रीय शांति स्थापित करने के उद्देश्य से मिस्र के शर्म-अल-शेख शहर में आयोजित गाज़ा पीस समिट 2025 में भारत ने संतुलित और रणनीतिक निर्णय लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्थान पर विदेश राज्यमंत्री किर्तिवर्धन सिंह को भेजा है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को अंतिम क्षणों में आमंत्रित किया था।
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी ने पीएम मोदी को सीधे आमंत्रित किया था। हालांकि, भारत ने संवेदनशील परिस्थितियों को देखते हुए सावधानी बरतते हुए पीएम की बजाय विशेष प्रतिनिधि के तौर पर विदेश राज्यमंत्री को भेजा। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भारत की संतुलित और विवेकपूर्ण विदेश नीति को दर्शाता है, जिससे न केवल भारत की उपस्थिति बनी रही, बल्कि सीधे राजनीतिक हस्तक्षेप से भी बचाव हुआ।
मिस्र सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य है:
- गाज़ा पट्टी में युद्धविराम (सीजफायर) सुनिश्चित करना
- मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता को मजबूत करना
- क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग के नए अवसर खोलना
- इस समिट में प्रमुख वैश्विक नेताओं की भागीदारी हो रही है, जिनमें शामिल हैं:
- जर्मनी के चांसलर फ्रिडरिख मेर्ज़
- फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों
- स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस
इस समिट से कुछ दिन पहले, 9 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच टेलीफोन पर बातचीत हुई थी। मोदी ने इज़रायल और हमास के बीच सीज़फायर और बंधक समझौते पर ट्रंप को बधाई दी थी। दोनों नेताओं ने इस दौरान द्विपक्षीय रक्षा सहयोग, तकनीक और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर चर्चा की थी।
भारत का इस समिट में भाग लेना यह दर्शाता है कि वह मध्य पूर्व की राजनीति में अब एक निष्क्रिय पर्यवेक्षक नहीं, बल्कि सक्रिय भूमिका निभा रहा है। विदेश राज्यमंत्री की उपस्थिति यह संकेत देती है कि भारत गाज़ा और फिलिस्तीनी क्षेत्र में शांति प्रक्रिया का समर्थक है, लेकिन वह किसी भी पक्ष की खुली वकालत से बचना चाहता है, जिससे उसका संतुलन बना रहे।
गाजा पीस समिट 2025 में भारत की रणनीतिक भागीदारी यह दर्शाती है कि नई दिल्ली अब वैश्विक मंचों पर अधिक आत्मविश्वास के साथ कूटनीति निभा रहा है। प्रधानमंत्री की बजाय राज्यमंत्री को भेजने का निर्णय यह साबित करता है कि भारत न केवल अपनी विदेश नीति में परिपक्वता दिखा रहा है, बल्कि सामरिक संतुलन और राष्ट्रीय हितों को भी प्राथमिकता दे रहा है।