पटना से दिल्ली तक, घाटों पर आज सूरज नहीं उगा — उसे बुलाया गया था भक्ति से।
लोक आस्था का महापर्व छठ इस बार भी देशभर में श्रद्धा, अनुशासन और उत्साह के साथ मनाया गया। सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद मंगलवार तड़के व्रतियों ने उगते सूर्य को ‘उषा अर्घ्य’ अर्पित किया। जैसे ही भगवान भास्कर की पहली किरण जल पर पड़ी, गीतों और जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा।
छठ केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और मातृत्व की भावना का उत्सव है। व्रती महिलाएं चौबीस घंटे निर्जला उपवास रखकर सूर्यदेव और छठी मैया से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
पटना, वाराणसी, गोरखपुर, रांची और नोएडा के घाटों पर लाखों लोगों ने इस आस्था के संगम को नज़दीक से देखा — जहां परंपरा, पर्यावरण और मानवता एक साथ झुकती दिखाई दीं।
नेपाल के बीरगंज की घड़ियारवा पोखरी, मुंबई का जुहू बीच, दिल्ली की यमुना तट, और उत्तर प्रदेश के सरयू घाट — हर जगह दीपों की रौशनी और गीतों की मिठास ने माहौल को भक्ति से भर दिया।
प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा और सफाई की पूरी व्यवस्था की थी, ताकि हर श्रद्धालु निर्बाध पूजा कर सके।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि “छठ पूजा भारतीय संस्कृति की दिव्यता का प्रतीक है।”
बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी घाटों पर जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया।
दिल्ली में मंत्री आशीष सूद ने बताया कि 12 साल बाद यमुना नदी पर छठ पूजा संभव हो पाई है — “यह केवल पूजा नहीं, बल्कि यमुना की शुद्धता का उत्सव है।”
बिहार के गया में मुस्लिम समाज के लोगों ने छठ व्रतियों के बीच पूजा सामग्री और फल वितरित किए। यह दृश्य इस पर्व को और भी पवित्र बना गया — जहां धर्म नहीं, बल्कि मानवता की जीत दिखी।
जब व्रती महिलाएं दोनों हाथ जोड़कर सूरज की किरणों में झुकीं, तो लगा मानो पूरा देश एक साथ कह रहा हो —
“सूरज देव, हमारे घर-आँगन को रोशनी से भर दो,
छठी मैया, सबके जीवन में सुख-शांति बरसा दो।”
छठ का यह पर्व फिर एक बार याद दिला गया कि भारत की असली ताकत उसकी आस्था, एकता और परंपरा में ही बसती है।













