पटना, 14 अक्टूबर 2025 —
बिहार की सियासत एक बार फिर गर्म है। विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर तनाव चरम पर है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जहां अपनी राजनीतिक बढ़त बनाते हुए उम्मीदवारों को सिंबल बांट रही है, वहीं कांग्रेस, VIP और वामपंथी दल अपनी हिस्सेदारी के लिए अड़ गए हैं। नतीजतन, गठबंधन में असहमति और अविश्वास की स्थिति बनती जा रही है।
तेजस्वी यादव ने नामांकन प्रक्रिया शुरू कर दी है और पहले चरण की चुनावी सभाएं भी कर चुके हैं। RJD ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है — यह सब तब हो रहा है जब गठबंधन में सीटों की औपचारिक घोषणा तक नहीं हुई।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, RJD यह संदेश देना चाहती है कि वह इस बार मुख्य नेतृत्वकर्ता की भूमिका में है और अपनी राजनीतिक ज़मीन किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं होने देगी।
कांग्रेस के नेता स्पष्ट कर चुके हैं कि वे 60 सीटों से कम पर समझौता नहीं करेंगे। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद पार्टी सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई थी।
RJD को लगता है कि कांग्रेस का खराब स्ट्राइक रेट गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए वह उसकी मांग को सीमित करने की कोशिश कर रही है।
मुकेश सहनी की पार्टी VIP को 18 से 20 सीटें चाहिए, लेकिन RJD की शर्त है कि इनमें से कुछ सीटों पर RJD के प्रत्याशी VIP के सिंबल पर लड़ें। VIP इससे नाखुश है।
वामपंथी दल, जिनमें CPI, CPI(M) और CPI(ML) शामिल हैं, 75 सीटों की मांग कर रहे हैं — जबकि RJD सिर्फ 19 सीटें देने को तैयार है।
इस टकराव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि महागठबंधन अब विचारधारा से ज्यादा सीटों की गिनती पर केंद्रित हो गया है।
कहलगांव (भागलपुर): कांग्रेस की परंपरागत सीट, लेकिन तेजस्वी यहां RJD उम्मीदवार उतारना चाहते हैं।
बछवारा (बेगूसराय): कांग्रेस निर्दलीय उम्मीदवार शिवप्रकाश गरीब दास को टिकट देना चाहती है, जबकि CPI विरोध कर रही है।
नरकटियागंज: RJD यहां दीपक यादव को उतारना चाहती है, जो कांग्रेस की नजर में कमजोर प्रत्याशी हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महागठबंधन की यह अंदरूनी लड़ाई सीधे-सीधे एनडीए के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। बीजेपी पहले ही अपनी प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुकी है और प्रचार में भी आक्रामकता दिखा रही है।
अगर महागठबंधन सीटों पर आपसी सहमति नहीं बना पाया, तो यह गठबंधन जमीनी स्तर पर लड़ाई लड़ने से पहले ही बिखर सकता है।
आज कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक होनी है, जिसमें बिहार को लेकर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन अगर यह बैठक भी बेनतीजा रही, तो गठबंधन का भविष्य अधर में लटक सकता है।
इस समय लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए यह अग्निपरीक्षा है —
क्या वे सहयोगी दलों को संतुलित रखकर गठबंधन को एकजुट रख पाएंगे?
या फिर सीटों की राजनीति में फंसा विपक्ष, सत्ता तक पहुंचने से पहले ही हार जाएगा?
बिहार में महागठबंधन राजनीतिक इच्छाशक्ति और रणनीतिक समझदारी की परीक्षा से गुजर रहा है। यदि यह गठबंधन चुनाव से पहले ही आपसी खींचतान में उलझ गया, तो 2025 का चुनाव सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि विपक्ष की एकता की साख के लिए भी निर्णायक होगा।