उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में 5 अगस्त को आई आपदा का रहस्य अब लगभग स्पष्ट हो गया है। धराली को तबाह करने वाली खीरगंगा की विनाशकारी बाढ़ किसी झील टूटने से नहीं, बल्कि कैचमेंट एरिया में बादल फटने (अत्यधिक वर्षा) से उत्पन्न हुई थी। भूगर्भ विज्ञानी डॉ. पीसी नवानी के शुरुआती आकलन को अब एसडीआरएफ की ओर से जुटाए गए प्रमाण भी पुख्ता कर रहे हैं।
धराली बाजार को पलक झपकते ही मिटा देने वाली इस प्रचंड बाढ़ के पीछे शुरुआत में ग्लेशियर लेक टूटने की आशंका जताई गई थी। लेकिन डॉ. नवानी का कहना था कि एक घंटे में 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा ने कैचमेंट एरिया में जमा विशाल मोरेन (ग्लेशियर मलबा) को बहा दिया। इससे उत्पन्न प्रवाह में करीब 100 क्यूमेक्स पानी 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से बहता हुआ धराली पहुंचा और भारी तबाही मचाई।
एसडीआरएफ की जांच ने दी पुष्टि
एसडीआरएफ ने 7 से 15 अगस्त के बीच तीन चरणों में खीरगंगा के उद्गम और कैचमेंट क्षेत्र का सर्वे किया। पर्वतारोहियों व विशेषज्ञों की टीम ने 4812 मीटर ऊंचाई तक पहुंचकर ड्रोन से विस्तृत वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की। इन तस्वीरों में कहीं भी झील या ग्लेशियर लेक का कोई निशान नहीं मिला, जबकि कैचमेंट क्षेत्र में विशाल मात्रा में मोरेन स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
इन साक्ष्यों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डॉ. नवानी ने कहा, “मेरा आकलन अब पूरी तरह पुष्टि में बदल गया है। खीरगंगा का उफान झील टूटने से नहीं, बल्कि अत्यधिक वर्षा और मोरेन के बहाव से आया।”
विशेषज्ञ भी सहमत
राज्य सरकार की ओर से भेजे गए भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र के विशेषज्ञ दल ने भी प्रारंभिक अध्ययन में ग्लेशियर लेक फटने की थ्योरी को खारिज कर बादल फटने को मुख्य कारण माना है।