नेपाल में सत्ता का संकट: अंतरिम सरकार का गठन, अमेरिका की भूमिका पर उठे सवाल

नेपाल एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अचानक अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और दो दिन के भीतर ही पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन कर दिया गया। इस अप्रत्याशित बदलाव ने देश और विदेश दोनों जगह राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है।

जहां एक ओर यह घटनाक्रम नेपाल की भीतरू राजनीति की असफलता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर इसमें अमेरिका की गुप्त भूमिका को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार, सुशीला कार्की के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार को नेपाली सेना का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। यह समर्थन अचानक और असामान्य माना जा रहा है, क्योंकि किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत न तो कोई जनादेश मांगा गया और न ही संसदीय बहुमत का परीक्षण हुआ।

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना का यह हस्तक्षेप संविधान की भावना के प्रतिकूल हो सकता है।

हालांकि अमेरिका की ओर से इस घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन ‘संडे गार्जियन’ सहित कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि यह सत्ता परिवर्तन अमेरिकी सहमति या मौन समर्थन के बिना संभव नहीं था।

विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका ने अतीत में नेपाल को रणनीतिक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया है — विशेषकर चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए।

1960 के दशक में अमेरिका ने नेपाल में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों को हथियार और प्रशिक्षण देकर चीन विरोधी गुरिल्ला बल तैयार किया। शीत युद्ध के दौरान नेपाल का इस्तेमाल अमेरिका ने खुफिया अभियानों, प्रचार अभियानों और अर्धसैनिक गतिविधियों के लिए किया।

9/11 के बाद, अमेरिका ने नेपाल के माओवादी विद्रोहियों को आतंकवादी घोषित कर अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत की। हजारों M-16 राइफलें और सैन्य सहायता नेपाल भेजी गई। इन ऐतिहासिक संदर्भों को देखते हुए मौजूदा घटनाएं अचानक नहीं लगतीं। कई नेपाली वरिष्ठ पत्रकारों, सेना और पुलिस अधिकारियों ने ऑफ रिकॉर्ड यह माना है कि बिना किसी बाहरी सहयोग के इतनी बड़ी सत्ता पलट संभव नहीं थी।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया:

“देश के अंदर कोई बड़ा राजनीतिक आंदोलन नहीं था, कोई राष्ट्रीय नेता सामने नहीं आया, फिर सत्ता इतनी जल्दी कैसे बदली?”

एक अन्य नेपाली अधिकारी ने संकेत दिया है कि नई सरकार के गठन के बाद विदेशी हस्तक्षेप की जांच की जा सकती है।

नेपाल एक संप्रभु लोकतांत्रिक राष्ट्र है, लेकिन लगातार राजनीतिक अस्थिरता और बार-बार की सत्ता परिवर्तन की घटनाएं इस संप्रभुता पर प्रश्नचिह्न खड़े करती हैं। अगर बाहरी ताकतें किसी देश के भीतर सरकार बदलने में भूमिका निभा रही हैं, तो यह न केवल उस देश की राजनीतिक स्वतंत्रता, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी खतरा बन सकता है।