उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ठंड ने इस बार समय से पहले ही अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी है। अक्टूबर के पहले सप्ताह में ही केदारनाथ, बदरीनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे तीर्थस्थल बर्फ की चादर में लिपट चुके हैं। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो यह सब ला नीना प्रभाव के चलते हो रहा है, जो आगामी सर्दियों को असामान्य रूप से लंबा और तीव्र बना सकता है।
केदारनाथ धाम में सोमवार दोपहर से शुरू हुई बर्फबारी मंगलवार तक जारी रही। बाबा केदार के दर्शन के लिए देश-विदेश से पहुंचे हजारों श्रद्धालु बर्फबारी के बीच कतारों में खड़े नजर आए। मंदिर परिसर और आसपास की पहाड़ियां बर्फ से ढक गई हैं, जिससे धाम का दृश्य अत्यंत मनोरम हो गया है।
बर्फबारी के बीच स्थानीय प्रशासन ने अलाव, रैनशेल्टर और गर्म पेय की व्यवस्था शुरू कर दी है। जिला प्रशासन यात्रियों से अपील कर रहा है कि वे गर्म कपड़े और जरूरी दवाएं साथ लेकर आएं।
पंतनगर विश्वविद्यालय के मौसम विशेषज्ञ डॉ. एएस नैन के अनुसार, ला नीना की शुरुआत इस बार नवंबर अंत से दिसंबर तक स्पष्ट रूप से महसूस होने लगेगी। इससे न केवल पहाड़ों में भारी बर्फबारी होगी, बल्कि मैदानी इलाकों में भी कोहरा और कड़ाके की ठंड लंबे समय तक रहने की संभावना है।
उन्होंने बताया कि इस बार बसंत ऋतु मार्च 2026 तक टल सकती है, और अप्रैल के मध्य तक भी ठंड का असर बना रह सकता है। इसका प्रभाव फसल उत्पादन, पर्यटन व्यवसाय, और सामान्य जनजीवन पर गहराई से पड़ेगा।
केदारनाथ सहित सभी चार धामों में इन दिनों चारधाम यात्रा का दूसरा और अंतिम चरण चल रहा है। केदारनाथ में प्रतिदिन 10,000 से ज्यादा श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। अब तक 16.45 लाख भक्त बाबा केदार के दर्शन कर चुके हैं।
धार्मिक परंपरा के अनुसार:
- गंगोत्री धाम के कपाट 22 अक्टूबर को बंद होंगे।
- केदारनाथ और यमुनोत्री के कपाट 23 अक्टूबर (भैयादूज) को बंद होंगे।
- बदरीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर को बंद होंगे।
मौसम विज्ञान केंद्र ने राज्य के ऊंचाई वाले जिलों — रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी — में 6 और 7 अक्टूबर को बर्फबारी और बारिश का पूर्वानुमान जारी किया है। पर्यटकों और स्थानीय लोगों को सलाह दी गई है कि वे अवश्यक सावधानियां बरतें और मौसम अपडेट पर ध्यान रखें।
जहाँ एक ओर बर्फबारी से केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों की दृश्य सुंदरता और आकर्षण कई गुना बढ़ गया है, वहीं दूसरी ओर बढ़ती ठंड और कठिन यात्रा परिस्थितियाँ यात्रियों व स्थानीय लोगों के लिए चुनौती भी बन सकती हैं।