तीन हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई वाले गंगोत्री व यमुनोत्री धाम में मौसम के बदलाव का असर साफ दिखाई दे रहा है। हर वर्ष दिसंबर से लेकर अप्रैल अंतिम सप्ताह तक बर्फ से ढके रहने वाले इन धामों इस बार छूने को भी बर्फ नहीं है, जबकि अभी फरवरी की भी विदाई नहीं हुई है। हां! ऊंची पहाड़ियों पर जरूर बर्फ जमी है, लेकिन ये चार हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई वाली हैं।
समुद्रतल से 3135 और 3291 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री व यमुनोत्री धाम के कपाट दीपावली के अगले दो दिनों के अंतराल में बंद होते हैं। इसके बाद क्षेत्र में मध्य दिसंबर से लेकर अप्रैल तक जोरदार बर्फबारी होती है, लेकिन इस सीजन में ऐसा कुछ नहीं है। स्थानीय जानकार एवं नेचर फोटोग्राफर कमलेश गुरुरानी कहते हैं कि इस बार शीतकाल के दौरान गंगोत्री घाटी में पांच बार बर्फबारी हुई, जबकि बीते वर्ष 25 से अधिक बार बर्फबारी हुई थी। कम बर्फबारी का असर इस बार सेब की पैदावार पर भी देखने को मिल सकता है।
गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार कहते हैं कि इस बार गंगोत्री धाम के आसपास छूने तक को बर्फ नहीं है। फरवरी प्रथम सप्ताह में जो बर्फबारी हुई थी, वह भी टिक नहीं पाई। वेयर ईगल डेयर बाइकर्स ग्रुप के संचालक तिलक सोनी बताते हैं कि इस बार जनवरी अंतिम सप्ताह उनका बाइङ्क्षकग का ग्रुप यहां आया था, जो गंगोत्री तक गया। हर्षिल घाटी में उम्मीदों के अनुरूप बर्फ नहीं मिल पायी। गंगोत्री में भी ढाई से तीन फीट के आसपास ही बर्फ थी।