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कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भाजपा सरकार पर बोला हमला बचाव में उतरे कौशिक; जाने पूरी खबर

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भाजपा सरकार पर बोला हमला बचाव में उतरे कौशिक; जाने पूरी खबर

पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान कांग्रेसी दिग्गज एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अकसर उनकी तारीफ किया करते थे, लेकिन इस दफा मामला बिल्कुल उलट दिखा। दरअसल, हरदा कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होने के बाद जनजागरूकता में जुटे हुए हैं। इंटरनेट मीडिया में उनकी अपील रोजाना ही देखने को मिल रही है। राजनीतिक दलों को नसीहत की बात हो या कोरोना से लड़ रहे फ्रंटलाइन वर्कर के उत्साहवर्द्धन की, हरदा सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। हाल ही में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भाजपा सरकार पर हमला बोला तो प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक बचाव में उतरे। कांग्रेस नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए बोले, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ऐसे वक्त में जनता के साथ खड़े होने का निर्णय लिया है, इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं। कांग्रेस नेताओं को महामारी के इस दौर में उनसे सीख लेनी चाहिए। फिलहाल कांग्रेस से इसका कोई जवाब नहीं मिला।

कोरोना ने विषम भूगोल वाले उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को रेखांकित कर दिया। स्वास्थ्य महकमा स्वयं मुख्यमंत्री संभाले हुए हैं, लेकिन उनके पास काम का इतना ज्यादा बोझ है कि एक महकमे के लिए वक्त निकालना मुमकिन नहीं। ऐसे में सत्ता के गलियारों में मांग उठती रही है कि स्वास्थ्य महकमा किसी मंत्री को सौंप दिया जाना चाहिए। इसी मसले ने कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को विवाद में फंसा दिया। मीडिया में हरक का बयान आया कि राज्य में अलग स्वास्थ्य मंत्री होना चाहिए। अब कांग्रेस कैसे मौका चूकती, घेर डाला सरकार को। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह बोले, सरकार पर लगाए जा रहे विपक्ष के आरोपों को मंत्री ने सही साबित कर दिया। कोरोना संक्रमण से निबटने में सरकार की अनिर्णय की स्थिति आड़े आ रही है। हालांकि हरक ने यह कहकर पल्ला झाड़ मामले का पटाक्षेप कर दिया कि उन्होंने ऐसा कोई बयान दिया ही नहीं।

पिछले साल जब कोरोना संक्रमण ने उत्तराखंड में दस्तक दी, उस वक्त के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारी में थे, लेकिन तब मंत्री बनने के तलबगार विधायक मन मसोस कर रह गए। कोरोना तो गया नहीं, मगर त्रिवेंद्र की जरूर विदाई हो गई। नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने आते ही पूर्व हो चुकी सरकार के कुछ फैसले पलटे। इस फेर में पिछली सरकार के समय नियुक्त 60 से ज्यादा दर्जाधारी मंत्री भी पैदल हो गए। दर्जाधारी मंत्री, यानी समितियों, आयोगों, परिषदों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पदों पर नियुक्त नेता, जो कैबिनेट और राज्य मंत्री के दर्जे से नवाजे गए थे। सत्ता सुख का लुत्फ लेते-लेते एक झटके में अर्श से फर्श पर आ गिरे। सरकार अपनी ही है, केवल मुखिया ही तो बदला, सोचकर इन्हें उम्मीद थी कि नए मुखिया इनकी फिर ताजपोशी कर देंगे। अफसोस, कोरोना ने इनके भी सपनों पर ग्रहण लगा दिया है।

कोरोना संक्रमण ने सूबे की राजधानी देहरादून को देश में अनचाही पहचान दिला दी। संक्रमण दर के मामलों में देहरादून देश के टाप 15 जिलों में शामिल हो गया। आलम यह कि मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य महकमे के शीर्ष अफसरों तक गुहार लगा लो, मौत से जूझते आम आदमी को एक अदद बेड नहीं मिल पा रहा है। अब दूसरा पहलू देखिए, देहरादून के महापौर सुनील उनियाल की टेस्ट रिपोर्ट पाजिटिव आई, लक्षण कुछ नहीं, मगर उन्हें डाक्टर की सलाह पर सबसे बड़े अस्पताल में दाखिल कर लिया गया। यह स्वयं महापौर ने इंटरनेट मीडिया में एक पोस्ट कर बताया। सरकार का पूरा तंत्र प्रचार कर रहा है कि लक्षण नहीं हैं तो घर पर आइसोलेट रहें, मगर वीआइपी पर यह बात लागू नहीं होती। सवाल सलाह देने वाले डाक्टर से भी, क्या वे मरीज नहीं दिखते, जिनकी सांसों की डोर आक्सीजन न मिलने के कारण टूट जा रही है।

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