पिछले साल जब कोरोना संक्रमण ने उत्तराखंड में दस्तक दी, उस वक्त के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारी में थे, लेकिन तब मंत्री बनने के तलबगार विधायक मन मसोस कर रह गए। कोरोना तो गया नहीं, मगर त्रिवेंद्र की जरूर विदाई हो गई। नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने आते ही पूर्व हो चुकी सरकार के कुछ फैसले पलटे। इस फेर में पिछली सरकार के समय नियुक्त 60 से ज्यादा दर्जाधारी मंत्री भी पैदल हो गए। दर्जाधारी मंत्री, यानी समितियों, आयोगों, परिषदों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पदों पर नियुक्त नेता, जो कैबिनेट और राज्य मंत्री के दर्जे से नवाजे गए थे। सत्ता सुख का लुत्फ लेते-लेते एक झटके में अर्श से फर्श पर आ गिरे। सरकार अपनी ही है, केवल मुखिया ही तो बदला, सोचकर इन्हें उम्मीद थी कि नए मुखिया इनकी फिर ताजपोशी कर देंगे। अफसोस, कोरोना ने इनके भी सपनों पर ग्रहण लगा दिया है।
कोरोना संक्रमण ने सूबे की राजधानी देहरादून को देश में अनचाही पहचान दिला दी। संक्रमण दर के मामलों में देहरादून देश के टाप 15 जिलों में शामिल हो गया। आलम यह कि मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य महकमे के शीर्ष अफसरों तक गुहार लगा लो, मौत से जूझते आम आदमी को एक अदद बेड नहीं मिल पा रहा है। अब दूसरा पहलू देखिए, देहरादून के महापौर सुनील उनियाल की टेस्ट रिपोर्ट पाजिटिव आई, लक्षण कुछ नहीं, मगर उन्हें डाक्टर की सलाह पर सबसे बड़े अस्पताल में दाखिल कर लिया गया। यह स्वयं महापौर ने इंटरनेट मीडिया में एक पोस्ट कर बताया। सरकार का पूरा तंत्र प्रचार कर रहा है कि लक्षण नहीं हैं तो घर पर आइसोलेट रहें, मगर वीआइपी पर यह बात लागू नहीं होती। सवाल सलाह देने वाले डाक्टर से भी, क्या वे मरीज नहीं दिखते, जिनकी सांसों की डोर आक्सीजन न मिलने के कारण टूट जा रही है।