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राजनाथ का सिंहासन भी डोल सकता है

राजनाथ का सिंहासन भी डोल सकता है

जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में राजनाथ सिंह तक भी पहुंच सकती है नई पीढ़ी की मोर्चाबंदी की तपन
बता दें कि हाल ही में हुए घटनाक्रम में भारतीय जनता पार्टी ने अपने वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी की चुनावी राजनीति से विदाई के साथ ही अमित शाह के आगमन की घोषणा कर दी है। हालांकि पूर्व से ही आडवाणी की विदाई तो तय मानी जा रही थी। बस उसकी औपचारिक घोषणा का इंतज़ार था। पर अमित शाह का चुनावी अखाड़े में उतरना भाजपा की भविष्य की राजनीति के संकेत देता है। अमित शाह की गुजरात के गांधीनगर सीट से उम्मीदवारी की घोषणा के ज़रिए पार्टी ने एक साथ कई संदेश दिए हैं। पहला संदेश इस घोषणा के रूप में आया है कि लालकृष्ण आडवाणी अब सक्रिय राजनीति से रिटायर कर दिए गए हैं। यह पुरानी पीढ़ी की विदाई का संदेश है।

पहली सूची में नाम न आने का मतलब है कि डॉ मुरली मनोहर जोशी का भी टिकट कट चुका है उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और कलराज मिश्र ने आने वाले समय का संकेत समझ लिया था और पहले ही चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी थी। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी को रक्षा मंत्रालय की स्थायी समिति के अध्यक्ष पद से हटाकर पहले ही पार्टी आलाकमान ने संदेश दे दिया था।

उन्हें अपने बेटे का भी भविष्य पार्टी में सुरक्षित नहीं लगा। इसलिए वो कांग्रेस में चले गए। ऐसे में साफ है कि नए युग की शुरूआत हो चुकी है। पुराने दिग्गज चाहे कितने भी भारी भरकम क्यों ना हों उन्हें अपनी जगह छोड़नी ही होगी। ऐसे में अगर फिर से मोदी की सरकार बनती है तो अमित शाह राजनाथ सिंह का स्थान भी हिला सकते हैं। राजनीति के जानकारों का एक नजरिया यह भी है। साभा

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