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वर्ष 2014 से 2017 के बीच कांग्रेस का दामन झटक कई दिग्गज भाजपा के पाले में जा पहुंचे

वर्ष 2014 से 2017 के बीच कांग्रेस का दामन झटक कई दिग्गज भाजपा के पाले में जा पहुंचे

वर्ष 2014 से 2017 के बीच कांग्रेस का दामन झटक कई दिग्गज भाजपा के पाले में जा पहुंचे। जवाब में भाजपा ने कमिटमेंट पूरा किया, सबको विधानसभा चुनाव में टिकट दिया। 57 सीटें जीत सत्ता हासिल की, मगर इसके बावजूद 10 सदस्यीय मंत्रिमंडल में पांच सीट पूर्व कांग्रेसियों को दे दी। त्रिवेंद्र के बाद तीरथ आए, मगर कोई बदलाव नहीं, धामी ने कमान संभालने के बाद अपना बोझ कुछ हल्का किया, तो भी कमिटमेंट का पूरा ख्याल रखा। सतपाल महाराज, यशपाल आर्य, हरक सिंह सबको अतिरिक्त मंत्रालय, रेखा आर्य की कैबिनेट में पदोन्नति। इन सबके बीच केवल सुबोध उनियाल ही ऐसे रहे, जिनके हिस्से वही सब रहा, जो 2017 में उन्हें मिला था। अब इंटरनेट मीडिया पर चल रहा है कि सुबोध भाई, काश आप भी थोड़ा सा रूठ गए होते तो शायद कुछ आपकी झोली में भी आ जाता। पता नहीं, खुद सुबोध इस बारे में क्या सोचते हैं।

हरक सिंह रावत सूबे के उर्जावान मंत्रियों की लिस्ट में अव्वल हैं। कैसे, चलिए बताते हैं, उत्तराखंड में अब तक दो बार भाजपा, दो बार कांग्रेस सत्ता में रही हैं। हरक इकलौते ऐसे शख्स हैं, जिनके पास हरदम मंत्री पद या इसके समकक्ष ओहदा रहा। पहली निर्वाचित सरकार में एनडी तिवारी की टीम का हिस्सा रहे, तो अगली सरकार भाजपा की आई। खंडूड़ी, निशंक, खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने, मगर हरक नेता प्रतिपक्ष के रूप में अकेले कैबिनेट मंत्री पद का लुत्फ उठाते रहे। फिर कांग्रेस की बहुगुणा, हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री और पाला बदल के बाद त्रिवेंद्र, तीरथ और अब धामी सरकार में भी ओहदा बरकरार। वैसे इनके सियासी सफर को देखें तो हरक की हनक का अंदाजा आसानी से हो जाता है। भाजपा से ओपनिंग की, बसपा, कांग्रेस होते हुए पांच साल पहले फिर भाजपा वापसी। अब नए नेतृत्व में उर्जा जैसा भारी पोर्टफोलियो। हैं न आलराउंडर हरक।

प्रतियोगी परीक्षाओं का मूल्यांकन करने वाले लोग कन्फ्यूज हैं, सही जवाब क्या मानें। फार्म भरा, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र थे, परीक्षा हुई तो तीरथ और जब कापी जांचने का मौका आया तो धामी के सिर पर ताज। दरअसल, यह चुटकुला इंटरनेट मीडिया में वायरल है। वैसे सूबे की सियासी सेहत है भी कुछ ऐसी ही, जिस तरह पलक झपकते मुख्यमंत्री बदल रहे हैं, कौन कन्फ्यूज न हो जाए। वैसे भाजपा हो या कांग्रेस, इसके लिए दोनों बराबर जिम्मेदार हैं। मालूम नहीं क्यों मुख्यमंत्री ऐसे फेटे जाते हैं, जैसे ताश के पत्ते। इस अनचाही परिपाटी का आगाज 21 साल पहले अंतरिम सरकार में ही हो गया था। नित्यानंद स्वामी बतौर मुख्यमंत्री एक साल पूरा करते, कोश्यारी आ गए। तिवारी के जैसे-तैसे पांच साल काटे, फिर पांच साल में खंडूड़ी, निशंक, खंडूड़ी। कांग्रेस सत्ता में आई तो बहुगुणा और हरीश रावत। चौथी विधानसभा में भी आंकड़ा तीन तक जा पहुंचा है, त्रिवेंद्र, तीरथ, पुष्कर।

सतपाल महाराज उत्तराखंड की सियासत के बड़े चेहरों में शुमार किए जाते हैं। भाजपा हो या कांग्रेस, हमेशा इनका नाम मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में लिया जाता रहा है। वजह भी वाजिब, सांसद और केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं, विधायक हैं और त्रिवेंद्र, तीरथ, धामी कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्यों में शामिल। किस्मत की कौन कहे, लेकिन इतना जरूर है कि हठ नहीं पालते। मनमाफिक न हुआ तो गुस्सा दिखाने से चूकते नहीं, मगर मान मनुहार के बाद फिर सब सामान्य। इस बार भी लगभग ऐसा ही हुआ, सियासी मोर्चे पर महाराज ने ठसक दिखाने के बाद बात अहम पर नहीं ली। इतना जरूर है कि वह अब अफसरों को कतई बख्शने के मूड में नहीं। कुछ दिन पहले हरिद्वार में एक बैठक में अफसरों को सच का आइना दिखाया, अब देहरादून में लोक निर्माण विभाग के अफसरों को लापरवाह कार्यशैली पर मौके पर ही कड़ी फटकार लगा डाली।

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