उत्तराखंड के लाल डॉ. शैलेश उप्रेती ने अमेरिका में कमाल कर दिया। लांग लास्टिंग बैटरी बनाने के लिए उनकी कंपनी ने 76 वेस्ट अवार्ड और 5 लाख डॉलर जीता उत्तराखंड के लाल ने सात समंदर पार ना केवल उत्तराखंड का नाम रोशन किया, बल्कि भारत का सिर भी गर्व से ऊंचा कर दिया था 76 वेस्ट एनर्जी प्रतियोगिता के विजेता वैज्ञानिक डॉ. शैलेश उप्रेती का। उन्होंने एक ऐसी बैटरी बनाई है, जो 20 से 22 घंटे का बैकअप देती है। उन्हें पुरस्कार के रूप में 3.4 करोड़ रुपये दिए हैं। उनके जन्म और प्रारंभिक शिक्षा डॉ. शैलेश उप्रेती का जन्म 25 सितंबर 1978 को अल्मोड़ा जिले के तल्ला ज्लूया मनान में पिता रेवाधर उप्रेती और माता चंद्रकला उप्रेती के घर हुआ।
शैलेश बचपन से ही होनहार थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राइमरी स्कूल मनान से की। पिता रेवाधर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी थे तो घर में पढ़ाई का महौल रहा। तीन भाई.बहनों में सबसे बड़े शैलेश ने वर्ष 1992 में जीआइसी बागेश्वर से हाईस्कूल किया। वर्ष 1994 में जीआइसी भगतोला अल्मोड़ा से इंटर की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की। शैलेश ने वर्ष 1997 में कुमाऊं यूनिवर्सिटी के अल्मोड़ा कैंपस से बीएससी की। इस दौरान उन्होंने सीडीएस की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2000 में अल्मोड़ा कैंपस से ही रसायन विज्ञान से एमएससी की। उन्होंने एमएससी में गोल्ड मैडल जीता।
शैलेश के मन में कुछ करने का जज्बा पहले से ही था। एमएससी के बाद उन्होंने नेट परीक्षा में जेआरएफ पास किया। वर्ष 2001 में उनका चयन पीएचडी के लिए दिल्ली के आइआइटी में हुआ। यहां भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। वह बेस्ट स्टूडेंट ऑफ द ईयर भी रहे। पीएचडी के दौरान उनके कई रिसर्च पेपर भी पब्लिश हुए। वर्ष 2007 में उनका चयन अमेरिका के स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में हुआ। पढ़ाई के दौरान वह एमटेक के क्लास भी लेते थे। 2013 में अमेरिका में बैटरी बनाने वाली चार्ज सीसीसीवी सी4वी बिंगमटन न्यूयार्क कंपनी की स्थापना की। उन्होंने 20 से 22 घंटे का बैकअप देने वाली लांग.लास्टिंग बैटरी बनाई। बता दें कि लिथियम ऑयन बैटरी के जीवनकाल को 20 साल के लिए बढ़ाता है, बल्कि उसकी भंडारण क्षमता और शक्ति में सुधार के साथ ही आग या शॉर्ट सर्किट की स्थिति में उसका तापमान कम कर देता है। 5 लाख डॉलर करीब 3.4 करोड़ रुपए का पुरस्कार जीता न्यूयॉर्क राज्य ऊर्जा अनुसंधान और विकास प्राधिकरण की ओर से न्यूयार्क की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण सुधार के विकल्प पर कार्य करने के मिशन को बढ़ावा के लिए दुनियाभर की कंपनियों में प्रतिस्पर्धा कराई गई थी। जनवरी में शुरू हुई प्रतियोगिता 8 चरणों में हुई और 6 अक्तूबर को पुरस्कार की घोषणा हुई थी।
30 नवंबर को न्यूयॉर्क में लेफ्टिनेंट गवर्नर कैथलीन होचूल ने डॉ. शैलेश को यह पुरस्कार दिया। इस प्रतियोगिता में विश्व की 175 कंपनियों ने हिस्सा लिया था।
डॉ शैलेश को अपनी संस्कृति से भी विशेष लगाव रहा है। डॉ शैलेश के छोटे भाई अशोक उप्रेती बताते हैं कि उन्हें गाने का शौक रहा है। उनके पहाड़ी गाने की दो कैसेट भी रिलीज हो चुकी है। इतना ही नहीं वह पहाड़ी वाद्य यंत्र भी बजाते हैं। हुड़का पहाड़ी वाद्य यंत्र बजाने में उन्हें महारथ हासिल है। शैलेश का विवाह बिंदिया उप्रेती से हुआ। उनकी डेढ़ साल की बेटी मायरा है। डॉण् शैलेश उप्रेती इस वर्ष रसायन विज्ञान का नोबेल अवार्ड जीतने वाले प्रोफेसर स्टेनली विटिंगम के प्रिय छात्रों में शुमार हैं। मालूम हो रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ़ साइंसेज ने घोषणा की थी कि इस वर्ष का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जॉन बीगुडएनफ, एम. स्टेनली विटिंगम और अकीरा योशिनो को संयुक्त रूप से लिथियम आयन बैटरी के विकास में किये गए उल्लेखनीय कार्य के लिए दिया जा रहा है।
डॉ शैलेश उप्रेती को ऐसे व्यक्ति ने अपना शिष्य बनाया जिसने नोबेल पुरस्कार दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार जीता। यह भी कहा जा सकता है कि हीरे की परख जौहरी को ही होती है। दाज्यू भी अपने गुरु के नक्शे.कदम पर चल रहे हैं और हर गुरु की भी ये ही कामना रहती है कि उसका शिष्य उससे कई गुना ज्यादा अच्छा काम करे। गुरु का नाम रोशन करेण् खूब नई ऊचाइयों को छुए और मैं आशा ही नही उम्मीद करता हूं कि दाज्यू भी गुरु की उम्मीदों पे खरा उतरें और गुरु की श्रेणी में जल्दी से शामिल हों। प्रोफेसर स्टेनली विटिंगम के साथ डॉ. शैलेश उप्रेती इस अवसर पर प्रोफेसर स्टेनली विटिंगम के साथ डॉ. शैलेश उप्रेती को लेखक अन्डोला परिवार की तरफ से को भी बधाई और साधुवाद कि उन्होंने यह शुभ समाचार सभी उत्तराखंडवासियों तक पहुंचाया। कुमांऊ विश्वविद्लाय के सोवन सिंह जीना परिसर 1997 से 2000 में अल्मोड़ा कैंपस से ही रसायन विज्ञान से एमएससी पढ़ाई के दौरान जूनियर सहयोगी था।
समाचार अशोक उप्रेती की पोस्ट से