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देहरादून का एमकेपी पीजी कॉलेज एक बार फिर जिलाधिकारी के हवाले हो गया है। प्रमुख सचिव आनंदवर्द्धन ने इसके आदेश जारी कर दिए हैं। हाईकोर्ट के आदेश के तहत अब नई सोसायटी का चुनाव होने तक एमकेपी में जिलाधिकारी सी. रविशंकर बतौर प्रशासक जिम्मेदारी निभाएंगे।एमकेपी पीजी कॉलेज में करीब सात साल से सोसायटी का विवाद चल रहा है। पूर्व में भी प्रिंसिपल डॉ. इंदु सिंह को मैनेजमेंट ने छुट्टी पर भेज दिया था। इस पर विवाद हाईकोर्ट तक पहुंचा था, इसके बाद दस जुलाई 2013 को तत्कालीन प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा राधा रतूड़ी ने एमकेपी की जिम्मेदारी डीएम को सौंपी थीं।लंबे समय से जिलाधिकारी ही सोसायटी में बतौर प्रशासक जिम्मेदारी संभाल रहे थे। एमकेपी से जुड़े मामलों पर आठ जनवरी को हाईकोर्ट ने एक आदेश जारी किया है। इसके तहत पूर्व में गठित सोसायटी को नियम विरुद्ध मानते हुए हाईकोर्ट ने जल्द नई सोसायटी के गठन के लिए चुनाव कराने के आदेश दिए हैं। इन आदेशों के तहत उच्च शिक्षा निदेशालय ने शासन को पत्र भेजा था।इस पत्र के आधार पर एमकेपी में दोबारा डीएम को प्रशासक नियुक्त कर दिया है। प्रमुख सचिव आनंद वर्द्धन का कहना है कि एमकेपी कॉलेज में दो माह से शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। यहां राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) के तहत काम भी नहीं हो पा रहे थे।
कॉलेज से जुड़ी तमाम वित्तीय व्यवस्थाएं बाधित हो रहीं थीं। लिहाजा, नई सोसायटी का चुनाव होने तक डीएम ही प्रशासक के तौर पर कॉलेज की व्यवस्थाएं देखेंगे।एमकेपी पीजी कॉलेज की प्रबंध समिति और विवादों का कई साल से नाता रहा है। पूर्व में भी कॉलेज में खर्च से लेकर प्राचार्य की कार्यप्रणाली पर विवाद इस कदर बढ़ा था कि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। पूर्व में विवाद की शुरुआत एमकेपी कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डा. इंदु सिंह को पद से हटाने को लेकर हुई थी।शक्तियों का गलत प्रयोग करने का आरोप लगाकर उन्हें पद से हटाया गया। मामला गढ़वाल विवि होते हुए न्यायालय तक पहुंचा। इस बीच प्रबंध समिति ने डॉ. किरन सूद को कार्यवाहक प्राचार्य बना दिया था। मामले को तूल उस वक्त मिला था, जब उच्च शिक्षा निदेशालय ने डॉ. किरन सूद को प्राचार्य न मानते हुए शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का वेतन रोक दिया था।निदेशालय का तर्क था कि डॉ. किरन सूद विधिक प्राचार्य नहीं हैं, जबकि गढ़वाल विवि के कुलपति का जवाब था कि विधिक तौर पर डॉ. इंदु सिंह ही प्राचार्य हैं। आखिरकार शासन ने कार्यकारिणी को भंग कर दिया था। हालांकि अब डॉ. इंदु सिंह और डॉ. किरन सूद रिटायर हो चुकी हैं।