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चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में खूबसूरत बुग्यालों के मध्य भगवान नारायण का एक ऐसा मंदिर है, इस मंदिर कपाट साल में सिर्फ एक दिन रक्षाबंधन पर्व पर ही खुलते हैं। इसी दिन सूर्यास्त से पूर्व शाम लगभग चार बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। मान्यता है कि साल के बाकी 364 दिन यहां देवर्षि नारद भगवान नारायण की पूजा-अर्चना करते हैं। मनुष्यों को सिर्फ एक दिन ही पूजा का अधिकार है। इस बार कपाट श्रावण पूर्णिमा पर 15 अगस्त को खोले जाएंगे।
समुद्रतल से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान वंशीनारायण मंदिर का निर्माण काल छठी से लेकर आठवीं सदी के मध्य का माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था।कत्यूरी शैली में बने दस फीट ऊंचे इस मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है, जहां चतुर्भुज रूप में भगवान विष्णु विराजमान हैं।
खास बात यह कि इस मूर्ति में भगवान नारायण व भगवान शिव, दोनों के ही दर्शन होते हैं। मंदिर में भगवान गणेश व वन देवियों की मूर्तियांभी मौजूद हैं। मंदिर की राह बेहद दुर्गम है। यहां पहुंचने के लिए बदरीनाथ हाइवे पर हेलंग से उर्गम घाटी तक आठ किमी की दूरी वाहन से तय करनी पड़ती है। इसके बाद शुरू होता है 12 किमी का दुश्वारियों भरा सफर।
वंशीनारायण मंदिर में मनुष्य को सिर्फ एक दिन पूजा का अधिकार दिए जाने की भी रोचक कहानी है। कहते हैं कि एक बार भगवान विष्णु ने राजा बलि के आग्रह पर पाताल लोक में उनके द्वारपाल की जिम्मेदारी संभाली। तब बहुत दिनों तक भगवान के दर्शन न हो पाने के कारण माता लक्ष्मी देवर्षि नारद के पास वंशीनारायण धाम पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। देवर्षि नारद ने माता को बताया कि भगवान पाताल में राजा बलि के द्वारपाल हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि पाताल से भगवान को मुक्त कराने की एक ही युक्ति है कि आप श्रावण पूर्णिमा को राजा बलि की कलई पर रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को मांग लेना। माता लक्ष्मी ने पाताल लोक का रास्ता ज्ञात न होने की बात कही और देवर्षि से भी साथ चलने का आग्रह किया।
मान्यता है कि देवर्षि के माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक चले जाने के कारण वह श्रावणी पूर्णिमा को भगवान वंशीनारायण की पूजा नहीं कर पाए। उस दिन कलगोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशीनारायण की पूजा संपन्न की। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
मंदिर में ठाकुर जाति के पुजारी होते हैं। वर्तमान में कलगोठ गांव के जाख पुजारी के पास यह जिम्मेदारी है। मंदिर के पास ही रिख उड्यार (भालू गुफा) है। यहां श्रद्धालु भोजन बनाने के साथ ही रात्रि विश्राम भी करते हैं। गुफा के ही पास प्राकृतिक जलस्रोत भी है।