लोक जनशक्ति पार्टी में घमासान मचा है। पार्टी पर कब्जे की जंग में इसके संस्थापक रहे राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को चाचा पशुपति कुमार पारस ने हाशिए पर ला खड़ा किया है। इस बीच कल तक खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे चिराग पासवान का अब भारतीय जनता पार्टी) से मोह भंग हो चुका है। ऐसे में सवाल यह है कि विपक्षी एकता को मजबूत करने की मुहिम में जुटे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरोधी लालू परिवार ने चिराग के पक्ष में अभी तक कोई बयान क्यों नहीं दिया?लालू प्रसाद यादव तथा उनके बेटे व नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बात-बात पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरते रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगियों के खिलाफ वे विपक्षी एकता के समर्थक रहे हैं। इन दिनों जीतन राम मांझी व मुकेश सहनी से बातचीत कर एनडीए में सेंध लगा सरकार गिराने की उनकी मंशा के खूब चर्चे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरोध में झंडा उठाकर घूमते रहे चिराग पासवान को अपने पाले में करने पर लालू प्रसाद यादव व तेजस्वी यादव मौन हैं।ऐसा नहीं है कि आरजेडी में चिराग को अपने पाले में देखने की इच्छा रखने वालों की कमी है। आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने चिराग पासवान को महागठबंधन से जुड़ने का न्योता जरूर दिया है। आरजेडी के भाइ वीरेंद्र ने भी ऐसा ही बयान दिया है। लेकिन आरजेडी में लालू प्रसाद यादव व उनके परिवार की चुप्पी मायने रखती है।
जहां तक चिराग पासवान की बात है, उनके कारण बीते विधानसभा चुनाव में आरजेडी को लाभ मिला। चिराग ने जेडीयू के खिलाफ उपने उम्मीदवार उतार कर उसके वोट काटे, जिस कारण बीजेपी के साथ आरजेडी की सीटें भी बढ़ीं। उन्होंने तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र में राकेश रौशन को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाकर बीजेपी के सतीश कुमार का भी वोट काटा, जिससे तेजस्वी की जीत का रास्ता आसान हो गया। लेकिन आज चिराग के मुसीबत में पड़ने पर लालू व तेजस्वी चुप हैं।ऐसा क्यों, इसे समझने के लिए राजनीति की नई पीढ़ी व विरासत की राजनीति पर ध्यान देना होगा। माना जा रहा है कि लालू परिवार नहीं चाहता कि महागठबंधन में तेजस्वी के समाने मुख्यमंत्री पद का कोई अन्य दावेदार पैदा हो जाए। चिराग पासवान की राष्ट्रीय छवि तेजस्वी की सूबाई छवि को ढ़क न ले, यह आशंका है। ऐसी आशंका इसलिए भी कि पहले भी एक बार रामविलास पासवान ने भी बेटे चिराग पासवान को लेकर कहा था कि उनमें बिहार का मुख्यमंत्री बनने की क्षमता है।
महागठबंधन के इतिहास पर गौर करें तो इसमें जिस नेता में भी तेजस्वी के मुख्यमंत्री प्रत्याशी की छवि को खतरा लगा, वह किनारे लगा दिया गया। बीते बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी का वाम दलों से गठबंधन था। वाम दलो को महत्व दिया गया, लेकिन राष्ट्रीय स्तर के बड़ वाम नेता कन्हैया कुमार की तूफानी चुनावी सभाएं नहीं हुईं। इसके पीछे आरजेडी का दबाव माना गया। बाद में पार्टी फोरम पर कन्हैया ने इसके लिए नाराजगी भी जताई।महागठबंधन में विकासशील इनसान पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी ने जब उपमुख्मंत्री पद की माग रख दी तो उनकी महत्वाकांक्षाओं पर भी लगाम कस दिया गया। बाद में मुकेश सहनी एनडीए में चले गए और आज बिहार सरकार में मंत्री हैं। ताजा मामले की बात करें तो हाल ही में कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान जन अधिािर पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव को 32 साल पुराने एक आपराधिक मामले में गरफ्तार किया गया। इसे लेकर विपक्ष ने खूब हाय-तौबा मचाया, लेकिन तेजस्वी यादव मौन रहे। इतना ही नहीं पप्पू यादव के खिलाफ मधेपुरा के विधायक और पूर्व मंत्री चंद्रशेखर ने बयान भी दिया।तेजस्वी की मुख्यमंत्री प्रत्याशी वाली छवि को जब बड़े नेताओं से खतरा लगा, उन्हें भी किनारे लगाने मे देर नहीं की गई। महागठबंधन में जब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने की चर्चा चलने लगी, तब तेजस्वी ने उन्हें किनारे लगा दिया। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी महागठबंधन में बड़े दलित चेहरा थे। उनके साथ भी यही हुआ। अब दोनों नेता जेडीयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हैं।