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किसान आंदोलन में बारिश ने डाली अड़चन;  अब किसान काले कानून रद्द कराकर ही मानेंगे चीमा

किसान आंदोलन में बारिश ने डाली अड़चन; अब किसान काले कानून रद्द कराकर ही मानेंगे चीमा

गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में बारिश ने खलल डाल दिया। बारिश से बचने के लिए टेंटों में रहे किसानों का जोश चर्चित जनकवि बल्ली सिंह चीमा ने स्वरचित जनगीतों को गाकर बढ़ाया। चीमा ने कहा कि अब किसान काले कानूनों को रद्द कराकर ही मानेंगे।उनके पंजाबी भाषा में लिखे गीत ‘अपणें मना चों लोकां ने तेरा हर इक डर कड दित्तै राजधानी नूं कहो पिंडा ने डरना छड़ दित्तै’ (अपने दिलों से लोगों ने तेरा हर एक डर निकाल दिया, राजधानी से कहो गांवों ने डरना छोड़ दिया), ले मशालें चल पड़े हैं लोग…, किसान आंदोलन में खूब गूंज रहे हैं।रविवार को गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे जनकवि बल्ली सिंह चीमा ने आंदोलन में सहभागिता की।

उन्होंने बारिश के चलते टेंटों में कैद किसानों से मुलाकात की और जनगीत गाकर उनकी हौसलाअफजाई की। उन्होंने आंदोलन के दौरान लिखे गीत ‘जात धर्म से ऊपर उठ जा इंसानों में शामिल हो…’, ‘जिंदा है तो दिल्ली आजा संघर्षों में शामिल हो…’ के अलावा ‘आत्महत्या कभी न करना अधिकारों की खातिर लड़ना…’, हमसे कहता है संविधान, हम हैं भारत के किसान…’ सहित अन्य जनगीत गाए।चीमा ने फोन पर हुई बातचीत में बताया कि विषम परिस्थितियों में किसान आंदोलन में डटे हुए हैं। उनके हौसले बुलंद है और वे अपने भविष्य के लिए चिंतित हैं। चीमा ने बताया कि वह एक हफ्ते तक अब गाजीपुर बॉर्डर पर रहेंगे और जनगीतों और कविताओं से किसानों का उत्साह बढ़ाएंगे।

उन्होंने कहा कि लोहड़ी पर वह घर लौटेंगे। वह समर्थन देने नहीं बल्कि सहभागिता करने के लिए गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे हैं क्योंकि वह खुद भी किसान हैं।चीमा ने बताया कि बारिश के चलते उन्हें मंच पर जनगीत गाने का मौका नहीं मिल सका, इसलिए उन्होंने टेंटों में किसानों के बीच जाकर जनगीत गाए। जनकवि ने कहा कि आंदोलन की सबसे अच्छी बात है कि इसमें अमीर और गरीब हर तबका पूरी शिद्दत के साथ शामिल है। ये लड़ाई किसान जरूर जीतेंगे।

 

 

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