सियासतदां हुए तो क्या हुआ, हैं तो आखिर इंसान ही। महीना ही गुजरा और इतने मसले कर दिए कि अब चुप रहना मुमकिन नहीं। चंद हफ्ते पहले सब कुछ अपने हाथ में था। क्या ये, क्या वे, सब हां में हां मिलाते दिखते थे। कुर्सी क्या गई, चारों तरफ आंखें तरेरने वाले इकट्ठा हो गए। ऐसा ही कुछ हाल है, हाल ही में पूर्व हुए मुखिया त्रिवेंद्र का। देवस्थानम बोर्ड बनाया, गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का एलान किया, सब ताली पीट रहे थे, मगर वक्त ने पलटी खाई, सबको नागवार गुजर गया। अरे भाई, मुखिया ही तो बदला, सरकार तो अपनी ही पार्टी की है। ऐसा तो हरदा ने भी नहीं किया, जब बहुगुणा को उतार वह कुर्सी पर बैठे थे। चिंता यह खाए जा रही है कि जब एक महीने में इतना कुछ बदल डाला, तो अगले 10 महीनों में, चुनाव तक तो सब नया नवेला ही नजर आएगा।
सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ, लेकिन एक को छोड़, बाकी सब मंत्री रिपीट हुए। अलबत्ता सीट खाली थीं, तो चार नई सवारी जरूर शामिल हो गईं। इनमें से दो को पहली दफा मौका मिला, तो दो पुराने धुरंधर। बंशीधर भगत भाजपा के पुराने दिग्गजों में शुमार हैं, पहले भी मंत्री रह चुके, मगर अब इन्होंने एक ऐसा फैसला कर डाला कि सब चौंक से गए। भगत ने अपने महकमे के एक कार्यक्रम में एक बड़ी घोषणा कर डाली, वाहवाही भी हुई लेकिन एक गड़बड़ हो गई। भगत भूल गए कि पानी के कनेक्शन को लेकर जो एलान उन्होंने किया, वह तो दूसरे के इलाके का मामला है। पानी वाले मंत्रीजी फिलहाल कुछ नहीं बोले, मगर बोलना तो पड़ेगा। बात यहीं खत्म नहीं होती। दूसरे कैबिनेट मंत्री ने एक कमेटी बनाने का फैसला किया और मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष बना दिया। समझे आप, खैर अब मुखियाजी के रिएक्शन का इंतजार है।