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हरदा देहरादून की सड़कों पर कंधे पर रसोई गैस रस्सी से आटो रिक्शा खींचते आए नजर

हरदा देहरादून की सड़कों पर कंधे पर रसोई गैस रस्सी से आटो रिक्शा खींचते आए नजर

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव हरीश रावत आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ जाने की पैरवी कर रहे हैं। उनकी पार्टी के नेताओं को यह बात रास नहीं आ रही। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता विधायक दल इंदिरा हृदयेश इसके उलट सामूहिक नेतृत्व की बात पर अडिग हैं, लेकिन हरदा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने के लिए उनका अपना अलग ही एजेंडा रहता है। इसकी बानगी दिखी पिछले दिनों। कांग्रेस के तमाम नेता गैरसैंण विधानसभा सत्र में जोरशोर से विपक्ष की भूमिका निभाने में मशगूल थे, इधर सुर्खियां हरदा बटोर ले गए। गैरसैंण में सत्र के अंतिम दिन हरदा देहरादून की सड़कों पर कंधे पर रसोई गैस सिलेंडर ढोते और रस्सी से आटो रिक्शा खींचते नजर आए। असल में, यह हरीश रावत का पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी समेत महंगाई के विरोध का अपना ही अंदाज था।

उत्तराखंड में नए जिलों के गठन की मांग हर बार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चरम पर होती है। यह बात दीगर है कि चार चुनाव निबट गए, बात अंजाम तक नहीं पहुंची। वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उस समय की भाजपा सरकार ने चार नए जिलों की घोषणा कर दी थी, लेकिन फिर सत्ता परिवर्तन ने मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस सरकार ने नए जिलों की मांग को हवा दी। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चार से बढ़कर आठ जिलों की पैरवी की, मगर वह भी इसका साहस नहीं जुटा पाए। इसके बाद मामला पुनर्गठन आयोग के हवाले कर दिया गया। अब हाल ही में मुख्यमंत्री ने पूरी तरह साफ कर दिया कि फिलहाल आर्थिक हालात नए जिलों के गठन के अनुकूल नहीं हैं। इस पर खर्च होने वाली धनराशि विकास कार्यों में लगाई जाएगी।

चार मार्च यूं तो कैलेंडर की एक तारीखभर है, लेकिन सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसे खास बना दिया है। पिछले साल गैरसैंण में उन्होंने चार मार्च को बजट पेश करते हुए इसे राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। दरअसल, गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उत्तराखंड को अलग राज्य बनाए जाने के पहले से रही है। अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में यह भाजपा और कांग्रेस के लिए एक बड़ा मुद्दा रहा। मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर विपक्ष कांग्रेस के हाथ से एक बड़ा सियासी मुद्दा छीन लिया। मुख्यमंत्री यहीं पर नहीं रुके। संयोग कहें या सुनियोजित कार्यक्रम, इस चार मार्च को फिर गैरसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान बजट पेश किया गया। त्रिवेंद्र ने बजट भाषण के दौरान फिर एक और छक्का जड़ दिया। इस बार गैरसैंण को कमिश्नरी बनाकर। अब लोग पूछ रहे हैं कि आखिर चार मार्च का टोटका है क्या।

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