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देहरादून की दीवारों पर जीवंत हो रही है उत्तराखंड की बहुरंगी संस्कृति

देहरादून की दीवारों पर जीवंत हो रही है उत्तराखंड की बहुरंगी संस्कृति

इस शहर की दीवारों पर आजकल  मानो जवानी छलक रही है। सीलन, पपड़ी और काई जमी दीवारों ने दुल्हन के आवरण पहन लिए हैं। क्योंकि देहरादून को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिल चुका है। हर दीवार सज रही है। इस नेक कार्य में DNS आर्ट क्लब देहरादून के विद्यार्थी रात दिन कार्य करने में लगे हैं। दीवारों पर उत्तराखंड के साहित्य, शिक्षा, कला, परिधान, खानपान व संस्कृति को कूची से उकेरा जा रहा है। पेंटिंग में यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि उत्तराखंड ने आधुनिकता की दौड़ में क्या खोया क्या पाया है। आज उत्तराखंड के पास क्या बचा है।

जल- जंगल- जमीन खोने के बाद प्रदेश को क्या हासिल हुआ है। देहरादून ने लीची औरआम के बाग खोए। शिक्षा का हब खोया। कंक्रीट का जंगल उगाया तो क्या मुनाफा हुआ ? दीवारों पर अगर समस्या उकेरी गई है तो समाधान भी झलक रहे हैं। कैसे लक्ष्य को हासिल करना है, यह चित्र में दिख तो रहा है मगर धरातल पर कैसे निवारण होगा,  इस का जवाब आज भी कंदराओं की किसी पांडुलिपि में दबा हुआ है। नवोदित राज्य आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से पिछड़ चुका है। सामुदायिकता ख़त्म हुई। सामूहिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। और क्यों, कब, कैसे, कौन का जवाब किसी के पास नहीं है।

सड़क के किनारे रंगों से उत्तराखंड को दर्शाने की कोशिश में मेरे कुछ मित्र इस नेक कार्य में विगत 4 दिन से लगे हैं, जिन में मुख्य रूप से शिखा,न बिंदिया, जेबा,  अकांक्षा , नवेंदु, जोसफ़, हरी, नदीम, सूरी, कोमल, अंशिका,जुनैद खान, आलोक कश्यप, काजल व वरुण आदि करीब 250 छात्र छात्राएं व उन के अध्यापकों की टीम काम कर रही है। शहर सज रहा है। नया रूप सब को भा रहा है। कोई सेल्फी ले रहा है तो कोई सेल्फिश बन के गुजर जाता है। कला की तारीफ होनी चाहिए। पहल की भी सराहना करनी चाहिए, मगर दीवारों को पीकदान व शौचालय बनाने वालों को विकास व प्रगति के चश्मे कौन लगाएगा ? यह बिल्ली के गले में घंटी बांधने से भी कठिन काम है।

 

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