पंजाब में कांग्रेस के कलह को शांत करने के लिए आलाकमान ने वरिष्ठ नेताओं की तीन सदस्यीय समिति बनाई। ऐसे हालात से निबटने के तजुर्बे के मद्देनजर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी इसमें शामिल किया गया। रावत कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व पंजाब के प्रभारी भी हैं। यह समिति पंजाब के बवाल को थामने में कितनी कामयाब होती है, यह अलग बात है, लेकिन इससे उत्तराखंड कांग्रेस के तमाम दिग्गजों के माथे पर पसीना आ गया है। उत्तराखंड में सात महीने बाद ही विधानसभा चुनाव हैं और हरीश रावत कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा, यानी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार। रावत अपनी महत्वाकांक्षा को छिपाते नहीं, यही उनके साथियों को नागवार गुजर रहा है। नतीजतन, उन्हें घेरने का कोई मौका ये छोड़ते नहीं। दिक्कत यह कि घर में भले ही रावत की पूछ न हो, मगर आलाकमान के लिए तो उत्तराखंड का मतलब ही हरीश रावत है ।
तीरथ सिंह रावत को जब गुजरे मार्च में सरकार की कमान मिली, उस वक्त उनके पास खुद को साबित करने के लिए सालभर का ही वक्त बचा था। ताजपोशी के तुरंत बाद हरिद्वार कुंभ और फिर कोविड की दूसरी लहर ने उनके सामने बड़ी चुनौतियां पेश कर दी। इससे निबटने के लिए तीरथ ने ऐसा कदम उठाया, कि मानना पड़ा कि जनाब दूरदर्शी सोच रखते हैं। पहले वन महकमे के सेवानिवृत्त मुखिया आरबीएस रावत को प्रमुख सलाहकार बनाया और फिर पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह को मुख्य सलाहकार। शत्रुघ्न मुख्य सूचना आयुक्त थे, पांच महीने पहले ही उन्होंने पद छोड़ दिया। रणनीतिक लिहाज से तीरथ के ये फैसले बेशक दूर की कौड़ी रहे, मगर कुछ लोग इससे शासन में दो शक्ति केंद्र उभरते देख रहे हैं। ऐसों को लगता है कि शासन के मौजूदा मुखिया ओमप्रकाश कहीं साइडलाइन हो गए हैं। अब विघ्नसंतोषियों को जबान पर कोई कैसे लगाम लगाए।
मदन कौशिक यूं तो सत्तारूढ़ भाजपा के प्रदेश संगठन के मुखिया हैं, मगर वह हनक अब नहीं दिखती, जो पिछली त्रिवेंद्र सरकार में नंबर दो की हैसियत में रहते हुए थी। मार्च में सरकार के साथ ही संगठन में भी नेतृत्व परिवर्तन किया गया, तो इसकी लपेट में कौशिक भी आए। मंत्रिमंडल में जगह देने के बजाय पार्टी ने उन्हें संगठन का जिम्मा सौंपा। कोविड कर्फ्यू में बाजार खोलने की मांग को लेकर हरिद्वार में व्यापारियों ने प्रदर्शन किया। थाली, घंटे-घड़ियाल लेकर व्यापारी सड़क पर उतरे तो कौशिक तुरंत दून दौड़ पड़े। दरअसल, कौशिक हरिद्वार से ही विधायक हैं। मुख्यमंत्री तीरथ से मिले और बाहर मीडिया से बोले कि दुकानें जल्द खुल जाएंगी। दुकानें तो नहीं खुली, मगर सरकार के प्रवक्ता व कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का तुरंत बयान आ गया कि बाजार संक्रमण कम होने पर ही खुलेंगे, किसी दबाव में नहीं। इसे ही कहते हैं वक्त का फेर।
हर पार्टी सत्ता में आने पर अपनों को हिस्सेदारी के तौर पर तमाम अहम जिम्मेदारियां सौंपती है। इस तरह की जिम्मेदारी को सूबे में दायित्व कहा जाता है, यानी सरकारी समितियों, बोर्ड और आयोगों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के ओहदे। इन्हें कैबिनेट या राज्य मंत्री का दर्जा दिया जाता है। यह बात दीगर है कि ऐसे तमाम नेता पद से हटने के बाद वर्षों तक खुद के लेटरपैड पर पूर्व मंत्री छपवाने से बाज नहीं आते, स्टेटस सिंबल के तौर पर। खैर, उत्तराखंड में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के साथ ऐसे 70 से ज्यादा इच्छाधारी पैदल हो गए। अब भला ऐसे कैसे कि नए निजाम में कद्दू कटे और अपनों में न बटे। सुगबुगाहट है कि जल्द दायित्व बटवारा होने जा रहा है। इससे तमाम नेताओं की हसरतें फिर जवां। इनमें कुछ वे जो मार्च में पैदल हुए तो कई नवेले भी कतार में और शुरू हो गई तीरथ यात्रा।