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मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कई बड़े विभागों को साथ मंत्रियों में बांटा

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कई बड़े विभागों को साथ मंत्रियों में बांटा

प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ। नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कई बड़े विभागों को साथ मंत्रियों में बांटा। इसके साथ ही उम्मीद की जा रही थी कि तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा शिक्षा जैसे अहम विभागों के बोझ से मुख्यमंत्री खुद को हल्का रखेंगे। विभागों के बंटवारे की सूची जारी हुई तो पता चला कि दोनों विभागों का जिम्मा मुख्यमंत्री के पास ही है। प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की तमाम व्यवस्थाएं स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी हुई हैं। मेडिकल कालेजों में शिक्षकों, नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति व तैनाती के साथ ही प्रशासनिक फैसलों में स्वास्थ्य विभाग का दखल बरकरार है। स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री के पास है तो चिकित्सा शिक्षा को भी बरकरार रखा गया। तकनीकी विश्वविद्यालय व सरकारी तकनीकी शिक्षण संस्थानों में गड़बड़ियों की कई स्तर पर जांच चल रही है। परतें उधड़ी तो बवाल हो सकता है। ऐसे में विभाग मुखिया के पास ही रहना ठीक है।शिक्षा में सुधार पर जब-जब जोर दिया जाता है, शिक्षकों को लेकर ढर्रा बदलने की पैरोकारी शुरू हो जाती है। जोर-शोर से नए करतब किए जाते हैं। पूरी कसरत के कुछ दिनों बाद हालत नौ दिन चले अढ़ाई कोस सरीखी हो जाती है। पुराना ढर्रा बदस्तूर चालू रहता है। इस बार चर्चा शिक्षकों की पदोन्नति में वरिष्ठता के साथ श्रेष्ठता को भी शामिल करने को लेकर हो रही है। शिक्षाधिकारियों की पदोन्नति में यही व्यवस्था लागू है। वरिष्ठता पर श्रेष्ठता को तवज्जो देने का फैसला लेना और फिर अमल में लाना आसान नहीं है। शिक्षक संगठन इसके खिलाफ हैं। इससे पहले शिक्षा मंत्रालय ने सभी शिक्षकों के लिए समान ड्रेस का फार्मूला सुझाया था। मंत्रीजी चार साल तक शिक्षक संगठनों की मनुहार करते रहे। शिक्षाधिकारियों ने कुछ हद तक बात मानीं। विभागीय बैठकों में यूनिफार्म में पहुंचते रहे, लेकिन शिक्षक संगठन तब भी टस से मस नहीं हुए थे।

सरकारी अनुदान के भरोसे चल रहे अशासकीय स्कूल बेचैन हैं। वजह शिक्षा विभाग और मंत्रीजी की नाराजगी। इन स्कूलों में शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के खाली पदों को भरने को लेकर हमेशा खींचतान चलती रहती है। नियुक्तियों में गड़बड़ी की शिकायतें मिलने पर कई दफा रोक भी लगाई जा चुकी है। रोक लगाने से बच्चों की पढ़ाई को नुकसान के अलावा ज्यादा कुछ हाथ लगता नहीं है। थक-हार कर दोबार नियुक्तियों को हरी झंडी दे दी जाती है। राज्य में 335 इंटर कालेज और 65 हाईस्कूल सहायताप्राप्त हैं। गड़बड़ी के मामलों की जांच को सरकार स्पेशल आडिट के आदेश दे चुकी है। सरकारी स्कूलों की तर्ज पर इन स्कूलों में नियुक्तियां राज्य लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से करने पर विचार किया जा रहा है। विभाग इस संबंध में प्रस्ताव तैयार कर रहा है। कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद इस पर अमल किया जाएगा।पब्लिक स्कूलों को टक्कर देने को तैयार किए जा रहे अटल आदर्श विद्यालयों में तैनात होने वाले शिक्षक मौज में रहेंगे। एक बार तैनाती होने के बाद पांच वर्ष तक उन्हें हटाया नहीं जा सकेगा। परफारमेंस के आधार पर उन्हें पांच साल से ज्यादा अवधि तक विद्यालयों में बनाए रखने का विकल्प दिया गया है। नए प्रविधान शामिल करने के लिए तबादला एक्ट में संशोधन किया जा रहा है। इसके बाद इन शिक्षकों के लिए विशेष व्यवस्था अमल में लाई जा सकेगी। शिक्षकों की तैनाती लिखित परीक्षा के माध्यम से ही होगी। लिखित परीक्षा का प्रारूप बनाने का जिम्मा उत्तराखंड बोर्ड को दिया गया है। अब विभाग शिक्षकों को नई व्यवस्था में शामिल होने को प्रेरित कर रहा है। ये विद्यालय सीबीएसई से मान्यताप्राप्त होंगे। शिक्षकों को भविष्य में कैडर परिवर्तन की समस्या उत्पन्न होने का अंदेशा है। हालांकि कैडर परिवर्तन के अंदेशे को विभाग खारिज कर चुका है।

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