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वर्ष 2017-18 में महज 49.8 फीसदी इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों को ही रोजगार मिल पाया था। पारंपरिक कोर्स मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, सिविल व इलेक्ट्रानिक्स के बजाय कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग, एयरोस्पेस व मेकाट्रॉनिक्स जैसे डिमांड वाले कोर्स की पढ़ाई पर जोर देना होगा। साथ ही पारंपरिक कोर्स की सीटों को नए रोजगार देने वाले कोर्स से जोड़ने का अनुरोध किया है। समिति ने हर दो साल में इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, परीक्षा व कोर्स को रिव्यू करने भी सुझाव दिया है।
केंद्र सरकार ने आईआईटी हैदराबाद के बोर्ड ऑफ गवर्नर के चेयरमैन प्रो. बीवीआर मोहन रेड्डी की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। इसमें आईआईटी, फिक्की, नेसकॉम, एसोचैम, सेंटर फॉर मैनेजमेंट एजुकेशन आदि के विशेषज्ञ शामिल हैं। समिति को हर वर्ष राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में इंजीनियरिंग पास आउट की डिमांड के आधार पर रिपोर्ट बनाकर कॉलेजों में सीट बढ़ाने-घटाने समेत बदलाव पर सुझाव देनी है।
एमटेक के बाद नहीं पढ़ा सकते इंजीनियरिंग के छात्रों को
इंजीनियरिंग कॉलेजों में अब शिक्षक एमटेक के बाद सीधे पढ़ाई नहीं करवा पाएंगे। समिति ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाने वाले शिक्षकों को बीएड, यूजीसी-नेट की तर्ज पर एजुकेशन में डिग्री, सर्टिफिकेट या डिप्लोमा की पढ़ाई करवाने की सिफारिश की है।
समिति का मानना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और अयोग्य फैकल्टी के चलते इंजीनियरिंग डिग्री के बाद भी छात्रों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। रोजगार के लिए बेहतर कैंपस प्लेसमेंट, गुणवत्ता युक्त शिक्षा व इंडस्ट्री की डिमांड के आधार पर कोर्स तैयार करने होंगे।
एआई, आईओटी पर रिसर्च
समिति ने रिसर्च पर जोर दिया है। अटल टिकरिंग लैब की तर्ज पर ओर अधिक लैब की जरूरत है। रिसर्च को बढ़ाने के लिए इक्यूबेशन सेंटर व मॉनिटरिंग क्लब बनने चाहिए। इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, इंटरनेट ऑफ थिकिंग, इंटरनेट एसडब्ल्यू, मॉबलिटी, ऐनलिटिक व कलाउंड उभरती टेक्नोलॉजी है।