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16 दिसंबर 1971, आधुनिक हथियारों और सैन्य साजोसामान से लैस 93 हजार पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के अदम्य साहस और वीरता के आगे घुटने टेक दिए थे। इसके साथ ही दुनिया के मानचित्र में बांग्लादेश नाम से एक नए देश का उदय हुआ। पाकिस्तान की इतनी भारी-भरकम फौज को आत्मसमर्पण के लिए तैयार करना कोई आसान काम नहीं था। पाकिस्तानी फौज के कमांडर जनरल नियाजी को मनाने की जिम्मेदारी भारतीय सेना के पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब को दी गई थी।वह जैकब ही थे जिन्हें मानेकशॉ ने आत्मसमर्पण की व्यवस्था करने ढाका भेजा था। उन्होंने ही जनरल नियाजी से बात कर उन्हें हथियार डालने के लिए राजी किया था। जैकब भारतीय सेना के यहूदी योद्धा थे।
जब अप्रैल में बांग्लादेश से भारत आने वाले शरणार्थियों की तादात इतनी बढ़ गई कि सीमवर्ती राज्यों ने अपने हाथ खड़े कर दिए तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशा को अपने ऑफिस बुलाया। बैठक के बाद मानेकशा ने अप्रैल के शुरू में पूर्वी कमान के स्टाफ ऑफिसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब को फोन कर कहा कि बांग्लादेश में घुसने की तैयारी करिए क्योंकि सरकार चाहती है कि हम वहां तुरंत हस्तक्षेप करें। जेएफआर जैकब ने मानेकशॉ के बताने की कोशिश की कि हमारे पास पर्वतीय डिवीजन हैं, हमारे पास कोई पुल नहीं हैं और मानसून भी शुरू होने वाला है। हमारे पास बांग्लादेश में घुसने का सैन्य तंत्र और आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं। जैकब ने कहा कि अगर हम वहां घुसते हैं तो यह पक्का है कि हम वहां फंस जाएंगे। इसलिए उन्होंने जनरल मानेकशॉ से कहा कि इसे 15 नवंबर तक स्थगित किया जाए तब तक शायद जमीन पूरी तरह से सूख जाए।जनरल मानेकशा ने तत्काल इसकी जानकारी इंदिरा गांधी को दी और कहा कि हम पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई को बरसात के बाद करेंगे। जिसके बाद भारतीय सेना को अपनी तैयारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय भी मिल गया।
जैकब के नेतृत्व में भारतीय सेना ढाका की तरफ आगे बढ़ी। 13 दिसंबर को सेना प्रमुख जनरल मानेकशा के आदेश के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के सभी शहरों पर भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया।