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यहां मौजूद है भगत सिंह की फांसी का वह सच जो लाहौर कोर्ट ने भारत को सौंपा था

यहां मौजूद है भगत सिंह की फांसी का वह सच जो लाहौर कोर्ट ने भारत को सौंपा था

शहीद-ए आजम भगत सिंह की फांसी से जुड़ा सच उत्तराखंड के इस जिले में मौजूद है। पाकिस्तान के लाहौर कोर्ट से हरिद्वार लाए गए केस ट्रायल की प्रति के उर्दू से हिंदी अनुवाद के बाद हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय द्वारा इसका डिजिटलाइजेशन किया जाना था। लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश कि इन दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया जा सका। इसके बाद यह काम रोक दिया गया है।

विश्वविद्यालय के संग्रहालय में रखे ट्रायल के 1667 पन्नों को एहतियातन दूर से ही देखने की इजाजत है। डिजिटलाइजेशन होने से ट्रायल का हर पेज पढ़ा जा सकता था। लेकिन हाईकोर्ट ने आदेश के बाद अब ऐसा नहीं हो सकेगा। जंगे आजादी के समय सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इस फांसी को लेकर देशवासियों में अब भी आक्रोश देखा जाता है।

लाहौर कोर्ट में चले इस ऐतिहासिक ट्रायल की प्रमाणित प्रतिलिपि वर्ष 2009 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. स्वतंत्र कुमार के प्रयास से हरिद्वार लाई गई। पाकिस्तान के सिंध प्रांत निवासी लक्ष्मण शर्मा ने ट्रायल का शब्द ब शब्द उर्दू से हिंदी में अनुवाद किया।

तब से धरोहर के रूप में गुरुकुल के संग्रहालय में रखे ट्रायल के पेज दूर से जरूर देखे जाते रहे, मगर पेज खराब होने के डर से इन्हें छूने या पलटने की अनुमति नहीं है। ट्रायल से जुड़े हर बिंदु से देशवासियों खासकर युवाओं को रूबरू कराने के लिए विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने अब उर्दू और हिंदी अनुवाद दोनों पेज का डिजिटलाइजेशन कराया था।

गुरुकुल कांगडी विवि के इतिहास विभागाध्यक्ष डा. देवेंद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि शहीद ए आजम भगत सिंह भारतीय युवाओं के आदर्श हैं। देशवासी उनकी फांसी से जुड़े सभी पहलुओं को जान सकें, इसके लिए केस ट्रायल का डिजिटलाइजेशन कराया गया था। लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इस काम को रोक दिया गया है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इन दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।

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